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की व्याख्या अनेक आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक रहस्यों को प्रकट करने वाली है। इस विस्तृत व्याख्या के पीछे दो तथ्य स्पष्ट होते है - . 1.उस समय में कुछ शब्दों के विविध अर्थ विस्मृत होने लगे होंगे।
2.उस समय में निक्षेप परम्परा का प्रारम्भ हो चुका होगा।
सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम 'समय' अध्ययन में अनेक दार्शनिक वादों का वर्णन है, तथापि नियुक्तिकार ने पंचमहाभूतवाद और अकारवाद इन दो वादों के खण्डन में ही अपने तर्क प्रस्तुत किये है। पाँचवें नरक विभक्ति अध्ययन की विवक्षा में पन्द्रह परमाधार्मिक देवों के कार्यों का वर्णन रोमांच पैदा करने वाला है। सूत्रकृतांग के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण 'समवसरण' अध्ययन की विवक्षा में 119वीं गाथा में नियुक्तिकार ने 363 मतान्तरों का निर्देश किया है, जिसमें 180 क्रियावादी, 84 अक्रियावादी, 67 अज्ञानवादी तथा 32 प्रकार के विनयवादी है।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम पौण्डरीक अध्ययन की नियुक्ति में संसार की विविध सर्वश्रेष्ठ वस्तुओं की गणना करवा दी गयी है।
नियुक्तिकार का यह शैलीगत वैशिष्ट्य है कि वे पर्यायवाची शब्दों की ओर विशेष ध्यान नहीं देते तथा कथा का भी विस्तार नहीं करते तथापि छठे अध्ययन में प्रसंगवशात् आर्द्रकुमार की कथा का विस्तृत उल्लेख किया है।
सातवें तथा अन्तिम नालन्दा अध्ययन में 'अलं' शब्द की नामादि चार निक्षेपों द्वारा विविध प्रकार से व्याख्या करते हुए नालन्दा में हुई गौतम तथा पार्थापत्यीय श्रमण उदक की चर्चा का वर्णन किया है।
इस प्रकार आकार में अत्यन्त लघुकाय ग्रन्थ होने पर भी नियुक्तिकार ने इसमें प्रत्येक पद की जो महत् और स्फुट व्याख्या की है, वह उस महापुरुष की प्रचण्ड प्रतिभा और प्रखर प्रज्ञा को ही उजागर करती है। 2. सूत्रकृतांग चूर्णि
आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक व्याख्याएँ नियुक्ति तथा भाष्य के रूप में प्रसिद्ध है, जोकि प्राकृत में रचित है। जैनाचार्यों को पद्यात्मक व्याख्याओं के साथ गद्यात्मक व्याख्याओं की भी आवश्यकता प्रतीत हुई। इसी आवश्यकता की पूर्ति के रूप में आगम तथा आगमेतर साहित्य पर प्राकृत अथवा संस्कृत मिश्रित प्राकृत में व्याख्याएँ लिखी गयी, जो चूर्णियों के रूप में प्रसिद्ध है।
सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 87
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