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________________ चातुर्याम धर्म को छोड़कर प्रतिक्रमणसहित पञ्चमहाव्रत रूप धर्म को स्वीकार करता है । इन समस्त अध्ययनों तथा वादों का विस्तृत वर्णन तथा दार्शनिक विश्लेषण अगले अध्ययन में किया जायेगा । सूत्रकृतांग सूत्र का व्याख्या साहित्य मूल ग्रन्थों के अर्थ के स्पष्टीकरण के लिये उस पर व्याख्यात्मक साहित्य लिखने की परम्परा प्राचीन भारतीय साहित्यकारों में विशेष रूप से विद्यमान रही है । वे मूलग्रन्थ के प्रत्येक शब्द की विवेचना एवं आलोचना करते तथा उस पर एक छोटी या बड़ी टीका लिखते । इस प्रकार के साहित्य से दो प्रयोजन सिद्ध होते है । व्याख्याकार को अपनी लेखनी से ग्रन्थकार के अभीष्ट अर्थ का विश्लेषण करने में असीम आत्मोल्लास होता है तथा कहीं-कहीं उसे अपनी मान्यता प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलता है। दूसरी ओर पाठक को ग्रन्थ के गूढार्थ तक पहुँचने के लिये अनावश्यक श्रम भी नहीं करना पड़ता । इस प्रकार व्याख्याकार का परिश्रम स्व-पर- उभय के लिये कल्याणकारी तथा उपयोगी सिद्ध होता है । प्राचीनतम जैन व्याख्यात्मक साहित्य में आगमिक व्याख्याओं का अतिमहत्त्वपूर्ण स्थान है। इन व्याख्याओं को हम पाँच कोटियों में विभक्त कर सकते है 1. नियुक्ति 2. भाष्य 3. चूर्णि 4. टीका तथा 5. लोकभाषाओं में रचित व्याख्याएँ । - अंगसूत्रों के क्रम में सूत्रकृतांग सूत्र का द्वितीय स्थान होने पर भी दार्शनिक साहित्य की दृष्टि से इसकी महत्ता और मूल्यवत्ता आचारांग सूत्र की अपेक्षा भी अधिक है। इसमें तत्कालीन अन्य मतों एवं दार्शनिक वादों का जो विस्तृत वर्णन एवं गम्भीर चिन्तन प्रस्तुत हुआ है, उसी को लक्ष्य में रखकर अनके श्रुतधर आचार्यों ने इस पर व्याख्यात्मक साहित्य का निर्माण किया है, जो इस प्रकार है 1. सूत्रकृतांग निर्युक्ति रचनाकार - जैनागमों के सर्वप्रथम व्याख्याकार कहलाने का श्रेय नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) को है । जिस प्रकार वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करने के लिये यास्क महर्षि ने निघण्टुभाष्यरूप निरूक्त लिखा, उसी प्रकार जैनागमों सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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