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________________ द्वितीय श्रुतस्कन्ध 1. पुण्डरीक नामक प्रथम अध्ययन में संसार रूप पुष्करिणी, कर्मरूप जल, कामभोग रूप कीचड़, पुण्डरीक कमलरूप राजा, धर्मतीर्थ रूप तट, कुशल भिक्षु रूप धर्म की प्रतीकात्मक कल्पना की गयी है। इस पुष्करिणी के मध्य में पुण्डरीक कमल है, जिसे पाने के लिये चार दिशाओं से चार पुरुष क्रमश: तज्जीवतच्छरीरवादी, पंचभूतवादी, ईश्वरकारणवादी तथा नियतिवादी आते है । वे सभी संसार रूप पुष्करिणी के कामभोग रूप कीचड़ में फँसकर पुण्डरीक कमल को पाने में असफल रहते है। अन्त में एक निस्पृह, अनासक्त, अहिंसादि पंचमहाव्रतों का पालन करने वाला साधक ही उस श्रेष्ठ कमल को प्राप्त करता है। इस रूपक की मनोरम व्याख्या के साथ उपर्युक्त चार वादों का यहाँ विस्तृत विश्लेषण हुआ है । 2. क्रियास्थान अध्ययन में कर्मबन्ध की कारणभूत बारह क्रियाओं का और कर्मबन्ध से मुक्त होने की तेरहवीं क्रिया का वर्णन होने से इसका नाम 'क्रियास्थान' है। 3. आहार परिज्ञा अध्ययन में द्रव्य तथा भाव आहार की विस्तृत चर्चा करते हुये श्रमण को मर्यादापूर्वक, निर्दोष, कल्पनीय आहार ग्रहण करने की बात पर विशेषरूप से बल दिया गया है। 4. प्रत्याख्यान क्रिया नामक अध्ययन में समस्त पाप कर्मों का बन्ध रोकने के लिये प्रत्याख्यान रूप संवर द्वारा आत्मा को अनुशासित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। 5. आचार श्रुत व अणगार श्रुत इस अध्ययन के ये दो नाम उपलब्ध होते है। इसमें साधु के अनाचार का निषेधात्मक रूप से वर्णन करते हुये उनसे सम्बन्धित आचारों का वर्णन होने से ये दोनों ही नाम सार्थक प्रतीत होते है। 6. आर्द्रकीय अध्ययन में अनार्य देशोत्पन्न आर्द्रकुमार के जीवन की घटना का नियुक्तिकार तथा वृत्तिकार ने विस्तृत उल्लेख किया है। जब आर्द्रकुमार मुनिदीक्षा लेकर परमात्मा महावीर के समवसरण की ओर प्रस्थान करते है, तब रास्ते में गोशालक, बौद्धभिक्षु, सांख्यमतवादी, एकदण्डी, हस्तीतापस आदि के साथ वादविवाद होता है। आर्द्रक मुनि युक्तियुक्त वचनों के द्वारा इन पाँचों के मतों का प्रखरता के साथ निरसन करते है । 7. नालन्दीय अध्ययन में गणधर गौतम तथा पार्थ्यापत्यीय पेढालपुत्र उदक की धर्म चर्चा का वर्णन है । अन्त में गौतम के द्वारा समाहित होने पर पेढालपुत्र 84 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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