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________________ को सम्यक्तया समझकर उसका प्ररूपण तथा तदनुसार आचरण करने की प्रेरणा दी गयी है। 14. ग्रन्थ अध्ययन में बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थों (गाँठ) के त्याग का उपदेश है। 15. यमकीय अध्ययन में विवेक की दुर्लभता, संयम के सुपरिणाम, साधना की पद्धति का निरूपण है, जिसका आदान (ग्रहण) करके साधक अपने कर्मों का क्षय करता है । यह अध्ययन यमक अलंकार में रचित है । 16. गाथा नामक षोडश अध्ययन गद्यात्मक होने पर भी गेय है नियुक्तिकार" तथा वृत्तिकार ने गाथा छन्द की विभिन्न प्रकार से मीमांसा की है - अ. जिसका उच्चारण कर्णप्रिय, मधुर तथा सुन्दर हो, वह मधुरा भी गाथा है ब. जो मधुर अक्षरों में प्रवृत्त करके गायी जाती हो, वह भी गाथा है । स. जिसमें अलग-अलग स्थित अर्थसमूह का एकत्रीकरण किया गया 1 हो, वह भी गाथा है। द. जो छन्दोबद्ध न होकर भी गायी जाती हो, वह गाथा है । इ. जो सामुद्र (गाथा ) छन्द में रचित मधुर प्राकृत शब्दावली से युक्त हो, वह भी गाथा है । 15 नियुक्तिकार के द्वारा प्रयुक्त सामुद्रछन्द का लक्षण छन्दोनुशासन के 6ठें अध्याय में इस प्रकार बताया गया है, 'ओजे सप्त समे नव सामुद्रकम् ॥' यह लक्षण प्रस्तुत अध्ययन की गाथाओं पर लागू नहीं होता । अतः यह शोध का विषय है। वृत्तिकार ने" गाथा का सामुद्रछन्द की दृष्टि से इस प्रकार अर्थ किया है अनिबद्ध है, छन्दोबद्ध नहीं है, उसे संसार में पण्डितों ने गाथा नाम दिया है | गाथा छन्द की उपर्युक्त समस्त व्याख्याओं के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत गाथा अध्ययन में पूर्वोक्त अध्ययनों का अर्थ समूह एकत्रकर समाविष्ट किया है । अत: इसे गाथा षोडषक कहा जाता है। तथा पद्यात्मक न होने पर भी गाथा छन्द में निबद्ध है, अत: गेय होने से भी इसका नाम गाथा रखा गया है। इस अध्ययन में माहन, श्रमण, भिक्षु तथा निर्ग्रन्थ का स्वरूप प्रशंसात्मक रूप से बताया गया है। सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 83 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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