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(ब) निक्षेप - शब्दों में विशेषण के द्वारा 'प्रतिनियत' अर्थ का प्रतिपादन करने की शक्ति निहित करना निक्षेप है।
(स) अनुगम - अस्तित्व, नास्तित्व, द्रव्यमान, क्षेत्र, स्पर्शना, काल आदि अनके पहलुओं की व्याख्या करना अनुगम है।
(द) नय - अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म का बोध करना नय है। सूत्रकृतांग में उपरोक्त चारों व्याख्या द्वारों का समावेश किया गया है। 7. छन्द - सूत्रकृतांग में गाथा, अनुष्टुप आदि संख्यात छन्द है।
8. नियुक्ति - निश्चयपूर्वक अर्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति नियुक्ति है। सूत्रकृतांग में संख्यात नियुक्तियाँ है।
9. प्रतिपत्ति - जिसमें द्रव्यादि पदार्थों की मान्यता का अथवा प्रतिमा आदि अभिग्रह विशेष का उल्लेख हो वह प्रतिपत्ति है। सूत्रकृतांग में ऐसी प्रतिपत्तियाँ भी संख्यात है।
सूत्रकृतांग सूत्र की विषयवस्तु सूत्रकृतांग की विषय-वस्तु का सामान्य परिचय विविध ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। समवायांग' में प्रस्तुत आगम का परिचय देते हुए कहा गया है कि इसमें लोक-अलोक, जीवाजीव आदि 9 पदार्थ, स्वसमय तथा परसमय की सूचना दी गयी है। 180 क्रियावादी, 84 अक्रियावादी, 67 अज्ञानवादी, 32 विनयवादी, इस प्रकार 363 पाखण्डियों के मत का निरूपण करते हुए अभिजात श्रमणों की दृष्टि परिमार्जित करने हेतु स्वसमय की प्रस्थापना की गयी है। नन्दीसूत्र में भी सूत्रकृतांग के विषय में लोक-अलोक, जीव-अजीव आदि के निरूपण के साथ क्रियावादी आदि 363 कुतीर्थिकों के मत का निरास करने की चर्चा की गयी है।
दिगम्बर साहित्य धवला' में कहा गया है कि सूत्रकृतांग सूत्र में ज्ञान, विनय, कल्प्य-अकल्प्य, छेदोपस्थापना, व्यवहार धर्म का विवेचन है तथा स्वसमयपरसमय व क्रियाओं का निरूपण है। आचार्य अकलंक ने तत्त्वार्थराजवार्तिक में सूत्रकृतांग के विषय का निरूपण उक्त प्रकार से ही किया है। जयधवला। के अनुसार सूत्रकृतांग में स्वसमय-परसमय, स्त्रीपरिणाम, क्लीबता, अस्पृष्टता, कामावेश, विभ्रम, आस्फालन सुख (स्त्रीसंग का सुख), पुरुषेच्छा आदि का वर्णन
80 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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