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ब. मध्यमपद - सोलह सौ चौतीस करोड़, तिरासी लाख, सात हजार, आठ सौ अठासी (16,34,83,07,888) मध्यमपद के वर्ण होते है। अंगों और पूर्वो का प्रमाण मध्यमपद के द्वारा होता है।"
स. प्रमाणपद - आठ अक्षरों से निष्पन्न प्रमाणपद कहा जाता है।
सूत्रकृतांग नियुक्ति में सूत्रकृतांग का पदपरिमाण आचारांग से दुगुना अर्थात् छत्तीस हजार बताया गया है। यह पद संख्या श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों परम्परा के ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर निर्दिष्ट की गयी है।"
यदि मध्यमपद के आधार पर सूत्रकृतांग की गणना की जाय तो इसका आकार बहुत विशाल हो जाता है। परन्तु इसका वर्तमान आकार छोटा है, अत: यह कहा जा सकता है कि आगम संकलन के समय इसका कुछ भाग लुप्त हो गया होगा क्योंकि देवर्द्धिगणि के समक्ष यही आकार उपलब्ध था। उन्होंने छत्तीस हजार पदों का उल्लेख परम्परा से प्राप्त मान्यता के अनुसार ही किया है।
नन्दी सूत्र के अनुसार सूत्रकृतांग में संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस और अनन्त स्थावर है। 2
5. वाचना - नन्दी तथा समवायांग के अनुसार सूत्रकृतांग की परिमित वाचनाएँ है। किन्तु वर्तमान में उपलब्ध सुत्रकृतांगवृत्ति में स्वीकृत पाठ रूप (माथुरी) एक वाचना तथा 'नागार्जुनीयास्तु' इन दो वाचनाओं का ही उल्लेख है। . 6. अनुयोगद्वार - सूत्रकृतांग में संख्यात अनुयोगद्वार है। हरिभद्रसूरि ने अनुयोग का अर्थ "अध्ययन के अर्थ की प्रतिपादन पद्धति' किया है। अनुयोग के चार द्वार होते है । जिस प्रकार द्वार रहित नगर नगर नहीं होता, उसी प्रकार उपक्रमादि के अभाव में ग्रन्थ का कोई रूप नहीं होता। विशेषावश्यक भाष्य में इसका विस्तार से उल्लेख मिलता है।" व्याख्या के चार द्वारों को आचारांग वृत्ति में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है -35
(अ) उपक्रम - यह व्याख्या का पहला द्वार है। इसके द्वारा श्रोता और पाठक को ग्रन्थ का परिचय कराया जाता है, जिसे उपोद्घात भी कहते है। बृहत्कल्पभाष्य की वृत्ति में उपोद्घात पर महत्त्वपूर्ण चर्चा करते हुए कहा है - "जिस प्रकार अँधेरे तलघर में रखी हुई वस्तुएँ दीपक के प्रकाश में दिखायी देती है, उसी प्रकार शास्त्र में निहित अर्थ उपोद्घात के द्वारा अभिव्यक्त होता है। शास्त्र की उपादेयता उपोद्घात से प्रमाणित होती है। मेघ से आच्छादित चन्द्रमा अधिक प्रकाशमान नहीं होता, उसी प्रकार शास्त्र भी उपोद्घात के बिना उपयोगी नहीं
सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 79
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