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अध्ययन
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6.
द्वितीय श्रुतस्कन्ध
उद्देशक पुण्डरीक क्रियास्थान आहारपरिज्ञा प्रत्याख्यान क्रिया अनाचार श्रुत
आर्द्रकीय
7. नालन्दीय इस प्रकार दो श्रुतस्कन्ध में कुल 23 अध्ययन तथा 33 उद्देशक है।
अचेलक (दिगम्बर) परम्परा में भी सूत्रकृतांग सूत्र के तेबीस अध्ययन मान्य है। परन्तु उपर्युक्त नामों में व अचेलक परम्परा में उलपब्ध नामों में कहीं-कहीं थोड़ा सा भेद है। प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयी नामक पुस्तक में 'तेवीसाए सुद्दयडएज्झाणेसु' ऐसा उल्लेख है। इस पाठ की “प्रभाचन्द्रीय वृत्ति" में इन तेबीस अध्ययनों के नाम भी गिनायें गये है, जो इस प्रकार है - 1. समय 2. वैतालीय 3. उपसर्ग 4. स्त्रीपरिणाम 5. नरक 6. वीर स्तुति 7. कुशील परिभाषा 8. वीर्य 9. धर्म 10. अग्र 11. मार्ग 12. समवसरण 13. त्रिकाल ग्रन्थहिद (?) 14. आत्मा 15. तदित्थगाथा (?) 16. पुण्डरीक 17. क्रियास्थान 18. आहारक परिणाम 19. प्रत्याख्यान 20. अनगारगुणकीर्ति 21. श्रुत 22. अर्थ 23. नालन्दा।"
4. पदपरिमाण - विशेषावश्यकमाष्य में पद का स्वरूप बताते हुए इसको अर्थ का वाचक एवं द्योतक कहा है।" बोलना, बैठना, अश्व, वृक्ष आदि पद के वाचक है। प्र, परि, च, वा इत्यादि पद द्योतक है। इसके अलावा पद के पाँच प्रकार भी उपलब्ध होते है। नामिक, नैपातिक, औपसर्गिक, आख्यातिक
और मिश्र। अश्व, वृक्ष आदि नामिक पद है। खलु, हि इत्यादि नैपातिक पद है। अप, सम, अनु इत्यादि औपसर्गिक पद है। दौड़ता है, खाता है इत्यादि आख्यातिक पद है। संयत, प्रवर्धमान, निवर्तमान आदि मिश्र पद है।
श्वेताम्बर परम्परा में पदपरिमाण उपलब्ध नहीं है, परन्तु दिगम्बर साहित्य में पद परिमाण का व्यवस्थित क्रम उल्लिखित है। उनके अनुसार पद के तीन प्रकार होते है - 1. अर्थपद 2. मध्यम पद और 3. परिमाण पद।
अ. अर्थपद - जितने अक्षरों से अर्थ की उपलब्धि होती है, वह अर्थपद है। 78 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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