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अध्ययन होने से इसे 'गाथा षोडषक' तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन विस्तृत होने से 'महज्झयणा' भी कहा जाता है। " समवायांग, नन्दी, उत्तराध्ययन तथा आवश्यक सूत्र में भी ऐसा ही उल्लेख मिलता है | 26
3. उद्देशक - जैनागमों का विषय विभाग की दृष्टि से जब वर्गीकरण किया जाता है, तब बड़े प्रकरण को अध्ययन तथा छोटे प्रकरण को उद्देशक कहा जाता है । अध्ययन के लिये ग्रन्थांश एवं कालांश की समुचित व्यवस्था की जाती थी । वही उद्देशन काल है । उदाहरण स्वरूप आचार्य शिष्य को आगम का अध्यापन करवाते है। पहला पाठ होता है - अंग, श्रुतस्कन्ध, अध्ययन और उद्देशक का बोध कराना। यह एक उद्देशक काल है। इस प्रकार पूर्ण ग्रन्थ के अध्ययन की व्यवस्था की जाती थी । सूत्रकृतांग के अध्ययन तथा उद्देशकों का विभाग इस प्रकार है -
अध्ययन
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प्रथम श्रुतस्कन्ध
समय
वैतालीय
उपसर्ग परिज्ञा
स्त्री परिज्ञा
नरक विभक्ति
वीर स्तुति .
कुशील परिभाषा
वीर्य
धर्म
समाधि
मार्ग
समवसरण
याथातथ्य
ग्रन्थ
आदान
गाथा
उद्देशक
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सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 77
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