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मीमांसा में अनेक विकल्प प्रस्तुत किये है। इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत अध्ययन गेय है एवं गाथा छन्द या सामुद्र छन्द में रचित है । 22 इसी प्रकार पन्द्रहवाँ यमकीय अध्ययन यमक अलंकार में ग्रथित है, जो आगम ग्रन्थों की काव्यात्मक शैली का विरल और अनूठा उदाहरण है ।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पञ्चम तथा षष्ठ अध्ययन को छोडकर शेष समस्त अध्ययन गद्य शैली में रचित है, जोकि बहुत विस्तृत है। इस श्रुतस्कन्ध में दृष्टान्तों तथा रूपकों के द्वारा विषय का स्पष्टीकरण किया गया है। प्रथम पुण्डरीक अध्ययन में पुण्डरीक कमल का रूपक देकर संसार तथा निर्वाण की जो परिकल्पना प्रस्तुत है, वह अत्यन्त सुन्दर एवं सहज बोधगम्य है। इसी प्रकार अन्य अध्ययनों में भी अनेक स्थलों पर दृष्टान्तों का प्रयोग हुआ है ।
प्रथम श्रुतस्कन्ध में जहाँ प्रत्येक विषय को सटीक, भावभरी उपमाओं के द्वारा स्पष्ट किया गया है, वहीं षष्ठ वीरस्तुति नामक अध्ययन में परमात्मा महावीर की स्तवना में संसार की समस्त उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठतम उपमाओं की तो जैसे श्रृंखला ही बन गयी है ।
इस प्रकार प्रस्तुत आगम की रचना शैली में अनेक विधाओं के दर्शन होते है ।
सूत्रकृतांग सूत्र : एक विश्लेषण
1. श्रुतस्कन्ध - अनेक अध्ययनों के समूह को स्कन्ध कहा जाता है। स्कन्ध वृक्ष के उस भाग को अर्थात् तने को कहते है, जहाँ से अनेक शाखाएँ फूटती है। जब किसी श्रुत अर्थात् शास्त्र में वर्ण्य विषय एवं शैली आदि की दृष्टि से अनेक विभाग किये जाते है, तब उसे श्रुतस्कन्ध कहते है । जैसे आचारांग को बाहयाचार और आन्तरिक आचार में एवं सूत्रकृतांग को पद्य एवं गद्य की दृष्टि से दो भागों में विभक्त किया गया है।
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सूत्रकृतांग के दो श्रुतस्कन्ध है। 23 प्रथम श्रुतस्कन्ध प्राचीन है जबकि द्वितीय श्रुतस्कन्ध बाद में जोड़ दिया गया है। यह मान्यता भी प्रचलित है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध के विषयों का ही द्वितीय श्रुतस्कन्ध में विस्तार हुआ है।
2. अध्ययन - सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सात अध्ययन है। नियुक्तिकार ने दोनों श्रुतस्कन्ध के तेबीस अध्ययन एवं तैंतीस उद्देशकों का उल्लेख किया है । 24 प्रथम श्रुतस्कन्ध में 16
76 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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