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________________ अध्ययन बड़े है। वृत्तिकार शीलाङ्काचार्य ने नियुक्तिकार के इस अभिप्राय को बहुत अधिक स्पष्ट करते हुए लिखा है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो विषय संक्षिप्त रूप से निरूपित किये गये है, वे ही विषय द्वितीय श्रुतस्कन्ध में उपपत्ति (युक्ति) पूर्वक विस्तृत कहे गये है। क्योंकि वे ही सिद्धान्त अथवा विधियाँ सुसंग्रहित होती है, जो समास (संक्षेप) तथा व्यास (विस्तार) पूर्वक कही जाये। इस कथन में उनका मन्तव्य स्पष्ट झलकता है कि संक्षेप तथा विस्तार इन दोनों विधियों से विषय-विवक्षा समीचीन रूप से प्रतिपादित होती है। इस प्रकार विषय-निरूपण एवं भाषा शैली की दृष्टि से प्रथम श्रुतस्कन्ध का समय महावीर के समकालीन कहा जा सकता है। परन्तु द्वितीय श्रुतस्कन्ध उत्तराकाल में ही संकलित हुआ होगा। सूत्रकृतांग सूत्र की रचनाशैली सूत्रकृतांग चूर्णिकार के अनुसार सूत्रों की रचना मुख्यत: चार प्रकार से की जाती __ 1. गद्य - चूर्णि ग्रन्थ, जैसे ब्रह्मचर्य अध्ययन (आचारांग)। 2. पद्य - सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध का 16वाँ 'गाथा षोडषक' अध्ययन। . 3. कथ्य - कथनीय-कथाप्रधान, जैसे उत्तराध्ययन, ऋषिभाषित, ज्ञाताधर्मकथा आदि। 4. गेय - स्वर सहित, जैसे उत्तराध्ययन का 8वाँ अध्ययन। दशवैकालिकनियुक्ति में ग्रथित एवं प्रकीर्णक दो प्रकार की शैली का उल्लेख मिलता है।" ग्रथित शैली से तात्पर्य है - रचना शैली। प्रकीर्णक शैली का अर्थ है - कथाशैली।" ग्रथित शैली चार प्रकार की होती है - गद्य, पद्य, गेय और चौर्ण ।२० सूत्रकृतांग सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध पद्यात्मक शैली में ग्रथित है। इसमें वैतालिक, अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, गाथा आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है। द्वितीय वैतालीय अध्ययन वैतालिक छन्द में निबद्ध है। नियुक्तिकार ने इस अध्ययन के नाम का भी यही कारण प्रस्तुत किया है। वृत्तिकार ने इस छन्द के लक्षण का अपनी वृत्ति में उल्लेख किया है। सोलहवाँ "गाथा षोडषक अध्ययन" गद्यशैली में रचित होने पर भी पद्यात्मक है। नियुक्तिकार ने 'गाथा' शब्द की सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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