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________________ कोई भी आगम अविकल रूप में प्राप्त नहीं है। आज जो भी प्राप्त है, वह उत्तरकाल में संकलित है और संकलनकार के रूप में वर्त्तमान आगमों के रचनाकार देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हैं। सूत्रकृतांग सूत्र का रचनाकाल चूँकि सूत्रकृतांग सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध सुधर्मगणधर की रचना है, अत: इसका कालमान ईसा पूर्व पाँचवी शताब्दी माना जा सकता है । परन्तु द्वितीय श्रुतस्कन्ध के रचनाकार के विषय में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता । अत: इसका रचनाकाल निर्धारित करना भी कठिन ही है । परन्तु देवर्द्धि गणि के समय यह अंग विद्यमान था । इस आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह भी ईसा के 500 वर्ष पूर्व का होना चाहिये। जिस प्रकार आगमों में सर्वाधिक प्राचीन आगम आचारांग है, उसी प्रकार सूत्रकृतांग को भी उतना ही प्राचीन कहने में किसी भी विद्वान को किसी भी प्रकार की विप्रतिपत्ति नहीं हो सकती । प्रो. विंटरनित्स का मत है कि इसका प्रथम श्रुतस्कन्ध प्राचीन है, उसकी तुलना में द्वितीय श्रुतस्कन्ध अर्वाचीन है । उनके अनुसार प्रथम श्रुतस्कन्ध एक व्यक्ति की रचना है । द्वितीय श्रुतस्कन्ध, जो कि गद्यात्मक है, अव्यवस्थित ढंग से एकत्र किये गये परिशिष्टों का समूह मात्र है। फिर भी भारतीय धार्मिक सम्प्रदायों का बोध कराने की दृष्टि से वह भी महत्त्वपूर्ण है । " 1 प्रो. विंटरनीत्स का कथन बहुत अंशों में सत्य के निकट है। भाषा, रचनाशैली, शब्द प्रयोग आदि की दृष्टि से आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की भाँति सूत्रकृतांग का प्रथम श्रुतस्कन्ध भी प्राचीन प्रतीत होता है। आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध जैसे प्रथम श्रुतस्कन्ध की चूलिका (परिशिष्ट) के रूप में उत्तरकाल में उसके साथ जोड़ा गया है, इसी प्रकार सूत्रकृतांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध भी प्रथम श्रुतस्कन्ध की चूलिका के रूप में बाद में जोड़ दिया गया है। हालाँकि इसकी चूलिका होने का स्पष्ट उल्लेख हमें कहीं नहीं मिलता जैसा उल्लेख आचारांग की चूलिका का 'आयार चूला' में मिलता है । तथापि द्वितीय श्रुतस्कन्ध प्रथम श्रुतस्कन्ध का परिशिष्ट है, यह तथ्य नियुक्तिकार द्वारा प्रयुक्त किये गये 'महाध्ययन' शब्द से ज्ञात होता है । 14 चूर्णिकार ने नियुक्तिकार के इस आशय को कुछ स्पष्ट करते लिखा हुए है कि प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन छोटे है तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के 74 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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