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रत्नाकरावतारिका वृत्ति : आ-समन्ताद् गम्यते वस्तुतत्वमनेनेत्यागमः। आवश्यक मलयगिरि वृत्ति : आ-अभिविधिना सकलश्रुतविषयव्याप्ति रूपेण, मर्यादया वा यथास्थित प्ररूपणा रूपया गम्यन्ते-परिच्छिद्यन्ते अर्था: येन स आगमः। आवश्यक नियुक्ति गाथा 89-90
तव नियमनाणरक्खं आरूढो केवली अमियनाणी। तो मुयइ नाणवुटि भवियजणविबोहणट्ठाए। तं बुद्धिमएण पडेण गणहरा गिहिउं निरवसेसं।
तित्थयरभासियाई गति तओ पवयणट्ठा। 17. नियमसार 8 :
तस्स मुहग्गदवयणं त्वापरदोसविरहियं सुद्धं ।
आगमिदि परिकहियं तं ण दुकहिया हवं तच्चत्था। 18. नियमसार वृत्ति 1.5
पंचास्तिकायतात्पर्यवृत्ति - 173.225 उपासकाध्ययन (सोमदेवसूरिकृत) ईश्वरप्रत्यभिज्ञा- विवृत्तिविमर्शिनी, आचार्य अभिनव गुप्त पृ. 97 रुद्रयामल तंत्र, वाचस्पत्यम, प्र. ख., पृ. 616 का पाद टिप्पण योगसूत्र - 7 योगवार्तिक सांख्यसूत्र - 1.101 सांख्यकारिका माठरवृत्ति, 5 न्यायसूत्र - 1.1.7 भगवती सूत्र - 5.3.192
स्थानांग सूत्र - 338.228 30. आचारांग सूत्र - 1.5.4 31. व्यवहारभाष्य गाथा - 201 32. अनुयोगद्वार सूत्र - 470, पृष्ठ 179 33. वही
आवश्यक नियुक्ति गाथा - 192 नन्दीसूत्र - 40 मूलाचार - 5.80 अ) विशेषावश्यक भाष्य गाथा - 550 ब) बृहत्कल्प भाष्य - 144 स) तत्त्वार्थ भाष्य - 1/20 . द) सर्वार्थ सिद्धि - 1/20
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा, पृ. 7 39. बृहत्कल्पभाष्य गाथा - 963-966 40. वही - 132 41. आचारांग सूत्र -1.5.5 68 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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