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________________ विवेचन किया । अनुयोग प्रवर्तक कन्हैयालालजी म. ने ठाणांग व समयवायांग, जैनागम निर्देशिका एवं आगम साहित्य के विषयों का पृथक्करण करके द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग एवं धर्मकथानुयोग का अलग-अलग प्रकाशन किया। मुनि फुलचंदजी म. ने 'सुत्तागमे' के नाम से दो भागों में मूल बत्तीस आगम प्रकाशित किये तथा 'अत्थागमे' के तीन भागों में ग्यारह अंगों का अनुवाद भी प्रकाशित किया । कविप्रवर श्री अमरमुनिजी म., आचार्य देवेन्द्रमुनि का भी आगम अनुसंधान में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । तेरापंथ के आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ का भी आगम संशोधन को महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने आगम बत्तीसी के कुछ आगमों का गंभीर एवं शोधयुक्त टिप्पण सहित हिन्दी अनुवाद एवं विवेचन किया है तथा वर्त्तमान में भी यह प्रक्रिया जारी है। इसके अलावा आगम कोष आदि का प्रकाशन भी किया है। गुजराती अनुवाद आगम साहित्य के प्रखर विद्वान् शोध पण्डित बेचरदासजी डोसी ने भगवती सूत्र, राजप्रश्नीय सूत्र, ज्ञाताधर्मकथा एवं उपासक दशा के गुजराती अनुवाद किये, साथ ही आवश्यक स्थलों पर महत्त्वपूर्ण टिप्पण भी दिये । इनकी भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। गोपालदास जीवाभाई पटेल ने कुछ आगमों के हिन्दी तथा गुजरात अनुवाद किये जिसमें आचारांग, सूत्रकृतांग, भगवती, अन्तकृददशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, विपाकसूत्र आदि प्रमुख है। इसी प्रकार जीवराज घेलाभाई ने स्थानांग व समवायांग का, भगवानदास ने भगवती तथा उपासकदशा का गुजराती अनुवाद किया है। इस युग के प्रबल मेधावी पण्डित श्री दलसुखभाई मालवणिया ने भी ठाणांग व समवायांग का संयुक्त एवं विद्वत्तापूर्ण प्रकाशन कराया है। पण्डित मालवणिया के द्वारा दिये गये टिप्पण उनके पाण्डित्य एवं शोधरूचि को स्पष्ट उजागर करते हैं। मुनि सौभाग्यचन्द्रजी (संतबालजी) ने भी आचारांग, उत्तराध्ययन और दशवैकालिक पर अनुवाद करके उन्हें प्रकाशित किये हैं। श्री प्रेम जिनागम प्रकाशन समिति घाटकोपर, मुबंई से मूल व गुजराती अनुवाद युक्त आगम प्रकाशित हुए हैं, जिसके मुख्य संपादक पण्डित शोभाचंद्रजी भारिल्ल है । आचारांग, सूत्रकृतांग, उपासकदशांग और विपाक आदि कतिपय आगम मुद्रित हो चुके है और 32 66 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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