SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टीका साहित्य निर्युक्ति, भाष्य एवं चूर्णियों के साथ आगम ग्रन्थों पर विस्तारपूर्वक टीकाएँ भी लिखी गयी। ये टीकाएँ आगम ग्रन्थों को समझने के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। टीकाओं की भाषा संस्कृत है। विक्रम की तृतीय शताब्दी में आचार्य अगस्त्यसूरि द्वारा निर्मित दशवैकालिक की चूर्णि में स्थान-स्थान पर टीकाओं का संकेत किया है । इससे यह सिद्ध होता है कि टीकाओं की रचना आगमों की अन्तिम वल्लभी वाचना के पूर्व होना प्रारम्भ हो गया था । टीकाकारों में आचार्य शीलांक, याकिनीसुनू हरिभद्रसूरि, नवांगी टीकाकार अभयदेव - सूरि आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है । हरिभद्रसूरि ने आवश्यक, दशवैकालिक, नन्दी, अनुयोगद्वार एवं प्रज्ञापना पर टीकाएँ लिखी। इन टीकाओं में लेखक ने कथाभाग को प्राकृत में ही रहने दिया । हरिभद्रसूरि के लगभग 100 वर्ष पश्चात् शीलांकाचार्य हुए, जिन्होंने प्रारम्भ के दो आगम आचारांग एवं सूत्रकृतांग पर टीका लिखी। इन दोनों टीकाओं में जैन आचार, विचार एवं तत्त्वज्ञान से संबंधित उपयोगी चर्चा की गयी है । अवशिष्ट नौ आगमों की टीका आचार्य अभयदेवसूरि द्वारा लिखी गयी | इतिहास के अनुसार जिस सूत्र की टीका में इन्हें सन्देह होता था, शासनदेवी सीमंधर परमात्मा से उसका समाधान करके इन्हें बताती थी । आगम साहित्य के संस्कृत टीकाकारों में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का नाम भी महत्त्वपूर्ण है। आचार्य मलयगिरि और हरिभद्रसूरि की आवश्यक निर्युक्ति पर, उत्तराध्ययन सूत्र पर वादि - वेताल शांतिसूरि एवं नेमिचन्द्रसूरि ( देवेन्द्रगणि) की टीकाएँ भी उल्लेखनीय है । हरिभद्रसूरि तो टीकाकार एवं दार्शनिक ग्रन्थों के बहुश्रुत विद्वान् लेखक हुए हैं। इस तरह आगम और उनकी व्याख्याओं के रूप में लिखे गये इस विराट् जैन साहित्य का अध्ययन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। विद्वान् एवं मनोवैज्ञानिक श्रमणों ने जैन सिद्धान्तों की पुष्टि के लिये उदाहरणों का भरपूर उपयोग किया है । डॉ. विण्टरनित्स के शब्दों में 'जैन टीका साहित्य में भारतीय प्राचीन कथा साहित्य के अनेक उज्ज्वल रत्न विद्यमान है । अन्यत्र इस प्रकार के साहित्य का अभाव है।' व्याख्या साहित्य की चार विधाओं के अतिरिक्त और भी विधाएँ बाद में प्रचलित हुई जो संस्कृत व क्षेत्रीय भाषाओं में निबद्ध थी। जैसे कथा अवचूरि, थेरावली, टब्बा, दीपिका, तात्पर्य वृत्ति आदि । 64 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy