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लिखे है। निम्नलिखित सूत्रों के भाष्य उपलब्ध है -
निशीथ, व्यवहार, कल्प, पंचकल्प, जीतकल्प, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दश - कालिक, ओघानिर्युक्ति, पिण्डनियुक्ति ।
आगमों के अतिरिक्त चैत्यवन्दनं देववन्दनादि पर भी भाष्य लिखे
गये हैं ।
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चूर्णि साहित्य
नियुक्ति गाथाओं के आधार पर चूर्णि साहित्य लिखा गया है। ये गद्य में रचित है, जो मात्र प्राकृत में ही न लिखी जाकर संस्कृत मिश्रित प्राकृत में लिखी गयी है । निशीथ के चूर्णिकार ने चूर्णि की निम्न परिभाषा दी है
पागडो ति प्राकृतः प्रगटो वा पदार्थो वस्तुभावो यत्र सः तथा परिभाष्यते अर्थोनयेति परिभाषा चूर्णिरुच्यते ॥
अभिधानराजेन्द्रकोष के निर्माता ने चूर्णि की निम्न परिभाषा दी है अत्थ बहुलं महत्थं हेउनिवाओवसग्ग गंभीरं ।
बहुपाय भवोछिन्नं गमणयसुद्धं तु चुण्णपयं ॥
जिसमें अर्थ की बहुलता व गम्भीरता हो, हेतु, निपात और उपसर्ग की गम्भीरता हो, अनेक पदों से समवेत हो, गमों से युक्त हो, नयों से शुद्ध हो, उसे चूर्णिपद समझना चाहिये ।
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निशीथ की विशेषचूर्णि और आवश्यकचूर्णि में पुरातत्त्व से संबंधित सामग्री की विपुलता है । लोककथा एवं भाषाशास्त्र की अपेक्षा भी इस साहित्य का अपना महत्त्व है।
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वज्रशाखीय संघदासगणि महत्तर अधिकांश चूर्णियों के कर्ता के रूप में प्रसिद्ध है। ईस्वी सन् की छठीं शताब्दी के आस-पास इनका समय माना जाता है । निम्नलिखित आगमों पर चूर्णि साहित्य उपलब्ध है -
आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, कल्प, व्यवहार, निशीथ, पंचकल्प, दशाश्रुत-स्कन्ध, जीतकल्प, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक, नंदी और अनुयोगद्वार |
आगमों के अतिरिक्त श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, सार्धशतक तथा कर्मग्रन्थों पर भी चूर्णि साहित्य उपलब्ध है।
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जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन / 63
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