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________________ 5. सूत्रकृतांग नियुक्ति - इसमें 205 गाथाएँ है तथा ऋषिभासित सूत्र का भी उल्लेख है। इस ग्रन्थ में गौतम, चण्डीदेवक, वारिभद्रक, अग्निहोत्रवादी तथा जल को पवित्र मानने वाले साधुओं के नाम है। साथ ही क्रियावादी. अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादियों के भेद प्रभेद भी गिनाये गये हैं। पार्श्वस्थ, अवसन्न और कुशील नामक निर्ग्रन्थों से परिचय का निषेध भी इसमें किया गया है। 6. दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति - यह आगम जितना लघुकाय है, उतनी ही छोटी इसकी नियुक्ति है। प्रारम्भ में रचनाकार ने अन्तिमश्रुतकेवली दशाकल्प और व्यवहार के प्रणेता भद्रबाहुसूरि को नमन किया है। दशा, कल्प और व्यवहार का यहाँ एक साथ उल्लेख है। आठवें अध्ययन की नियुक्ति में पर्युषणा कल्प का व्याख्यान है। 7, 8. बृहत्कल्प और व्यवहार नियुक्ति - बृहत्कल्प और व्यवहार सूत्र पर भी आचार्य भद्रबाहु ने नियुक्ति लिखी थी। बृहत्कल्प नियुक्ति संघदासगणि क्षमाश्रमण के लघुभाष्य की गाथाओं के साथ और व्यवहार नियुक्ति व्यवहार भाष्य की गाथाओं के साथ मिश्रित हो गयी है। 9. सूर्यप्रज्ञप्ति नियुक्ति - यद्यपि भद्रबाहुसूरि ने इसकी रचना की थी, परन्तु कालचक्र के प्रभाव से इसके टीकाकार मलयगिरि के अनुसार यह नष्ट हो गयी है। अत: वे मात्र सूत्रों की ही व्याख्या कर पाये हैं। 10. ऋषिभाषित नियुक्ति - यह रचना ऋषिभासित पर हुई थी, परन्तु वर्तमान में अनुपलब्ध होने से इसकी विषयवस्तु ज्ञात नहीं है। भाष्य साहित्य नियुक्ति की तरह ही भाष्य भी प्राकृत में संक्षिप्त शैली में लिखे गये हैं। इनकी मुख्य भाषा अर्धमागधी है। वैसे शौरसेनी और मागधी के प्रयोग भी देखने में आते हैं। इनका मुख्य छन्द आर्या है। इनका रचनाकाल लगभग ईस्वी सन् की चौथी पाँचवीं शताब्दी है। भाष्यसाहित्य में निशीथभाष्य, व्यवहारभाष्य और बृहत्कल्पभाष्य विशेष महत्त्वपूर्ण है। श्रमण संघ के आचार विचार अच्छी तरह से जानने के लिये इन तीनों का गम्भीर अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। इन तीनों के रचयिता संघदासगणि क्षमाश्रमण है। ये वसुदेवहिण्डी के कर्ता संघदासगणि वाचक से भिन्न है। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने भी कुछ आगम ग्रन्थों पर भाष्य 62 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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