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प्राकृत गाथाओं में लिखा संक्षिप्त विवेचन है। इसमें कथ्य को पुष्ट करने के लिये कथानकों का प्रयोग भी हुआ है । परन्तु यह इतना संक्षिप्त और सांकेतिक है कि बिना भाष्य और टीका के समझ में नहीं आता । अत: टीकाकारों ने आगमों के साथ नियुक्ति पर टीकाएँ लिखी ।
पिण्डनिर्युक्ति और ओघनियुक्ति मूलागमों में मानी जाती है। इससे भी निर्युक्ति साहित्य की प्राचीनता पुष्ट होती है । वल्लभी वाचना के समय चौथी - पाँचवी शताब्दी पूर्व ही निर्युक्तियाँ लिखनी प्रारम्भ हो गयी थी । नयचक्र के कर्ता आचार्य मल्लवादी (विक्रम की पाँचवी शताब्दी) ने अपने ग्रन्थ में निर्युक्ति की गाथा का उद्धरण दिया है। योग से नियुक्ति और भाष्य की गाथाएँ इस प्रकार मिश्रित हो गयी है कि चूर्णिकार भी उन्हें भिन्न नहीं कर पाये । "
1. आवश्यक निर्युक्ति - इसमें छह आवश्यकों का विवेचन है । सर्वप्रथम हरिभद्रसूरि ने इस पर शिष्यहिता नामक वृत्ति लिखी। इसी का अनुसरण करते हुए भट्टारक ज्ञानसागरसूरि ने अवचूरि लिखी । इसमें भद्रबाहु द्वारा आवश्यक आदि दश नियुक्तियाँ रचने का उल्लेख है। बाद में मलयगिरि द्वारा रचित आवश्यकनियुक्ति टीका तीन भागों में प्रकाशित हुई । और भी अनेक आचार्यों ने इसकी नियुक्ति पर अवचूरि लिखी । इस नियुक्ति पर विपुल साहित्य की रचना हुई है ।
2. दशवैकालिक नियुक्ति - इस पर भद्रबाहु रचित 371 गाथा की नियुक्ति है। निर्युक्ति और भाष्य वैसे मिश्रित हो गये हैं। सभी अध्ययनों पर नियुक्ति की रचना हुई है। इसमें लौकिक, धार्मिक कथानकों द्वारा तथा सूक्तियों से सूत्रार्थ स्पष्ट किया गया है।
3. उत्तराध्ययन निर्युक्ति - इस सूत्र पर भद्रबाहुसूरि की 559 गाथाओं नियुक्ति है । मूलाम के 36 अध्ययनों पर यह नियुक्ति है। इसमें गंधार श्रावक तोसलिपुत्र, आचार्य स्थूलभद्र, हरिकेशी, मृगापुत्र, करकण्डु आदि कथाओं का विवेचन है। आठ निह्नवों का भी विस्तार से वर्णन है । भद्रबाहु के चार शिष्यों द्वारा वैभार पर्वत की गुफा में शीत समाधि ग्रहण करने तथा मुनि सुवर्णभद्र द्वारा मच्छरों के उपसर्ग से कालधर्म प्राप्त होने का भी उल्लेख है। कहीं-कहीं मनोरंजक मागधिकाओं का भी वर्णन है ।
4. आचारांग नियुक्ति - आचारांग सूत्र पर भद्रबाहुसूरि ने 356 गाथाओं में नियुक्ति लिखी है। इस पर शीलांक ने महापरिण्णा नामक सातवें अध्ययन की दश गाथाओं को छोड़कर टीका की है।
जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन / 61
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