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________________ उनके छिद्रों की सम्यक् प्रकार से पडिलेहन नहीं हो पाती। कुंथु आदि त्रस जीवों का आश्रय होने के कारण पुस्तक अधिकरण है। चोर आदि द्वारा चुराये जाने पर भी अधिकरण हो जाती है। तीर्थंकरों ने श्रमणों को अपरिग्रही कहा है, जबकि पुस्तक परिग्रह है। पुस्तकें पास में रखने से स्वाध्याय में प्रमाद होता है, पुस्तकों के बांधने, खोलने में भी काफी समय बीत जाता है। पुस्तक बांधने,खोलने से और जितने अक्षर लिखे जाते हैं, उतने चतुर्लघुकों का प्रायश्चित्त आता है।" अत: इन सभी कारणों की अपेक्षा से लेखन कला का ज्ञान होने पर भी आगमों का लेखन नहीं हो पाया। श्रमण के जीवन में ध्यान और स्वाध्याय का विधान तो मिलता है परन्तु लिखने का विधान कहीं पर भी प्राप्त नहीं होता। इतना सब होते हुए भी आगम सम्पूर्णत: विच्छिन्न न हो जाय, मात्र इसी लक्ष्य से आगम लिखने का और रखने का विधान किया। आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य जैनागम सूत्रबद्ध होने के कारण उन्हें व्याख्यायित करना अनिवार्य था। इस व्याख्या साहित्य के अन्तर्गत नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका और टब्बा या हिन्दी अनुवाद आते हैं। आगम संकलन के साथ ही व्याख्या साहित्य का लेखन प्रारम्भ हो गया। नियुक्ति साहित्य सर्वप्रथम भद्रबाहु स्वामी ने दस आगम ग्रन्थों पर पद्यबद्ध प्राकृत नियुक्ति साहित्य लिखा। आचार्य भद्रबाहु ने, आवश्यक नियुक्ति की गाथा 88 में नियुक्ति का निरूक्त इस प्रकार किया है - 'निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ निज्जुत्ती।' जिसके द्वारा सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय होता है, वह नियुक्ति है। 'सूत्रार्थयो: परस्परं नियोजनं संबंधनं नियुक्ति:' निश्चत रूप से सम्यग् अर्थ का निर्णय करना तथा सूत्र में ही परस्पर संबद्ध अर्थ का प्रकट करना नियुक्ति का उद्देश्य है। जर्मन विद्वान् शान्टियर के अनुसार नियुक्तियाँ प्रधान रूप से संबंधित ग्रन्थ के इन्डेक्स का कार्य करती है। इस परिभाषा से यही फलित होता है, सूत्र में नियुक्त (विद्यमान) अर्थ की व्याख्या करना नियुक्ति है। नियुक्ति आगमों पर आर्या छन्द 60 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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