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________________ है, उसमें भी उपांग विभाग का उल्लेख हुआ है । 4 सर्वप्रथम यह उपांग शब्द कहाँ से आया, यह स्पष्ट नहीं है । परन्तु पण्डित श्री बेचरदासजी दोषी के अनुसार चूर्णि साहित्य में भी उपांग शब्द का प्रयोग हुआ है 105 मूल और छेद सूत्रों का विभाग किस समय हुआ, यह निश्चित रूप से तो नहीं कहा जा सकता परन्तु दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि की नियुक्ति, चूर्ण और वृत्तियों में तो मूलसूत्र के सम्बन्ध में किंचित् भी चर्चा नहीं है । इससे स्पष्ट है कि ग्यारहवीं शताब्दी तक मूल सूत्र के रूप में विभाजन नहीं था । श्रावकविधि के लेखक धनपाल, जो कि ग्यारहवीं शताब्दी में हुए हैं, ने अपने ग्रन्थ में 45 आगमों का निर्देश किया है। गाथा सहस्त्री में समयसुन्दर गणि ने धनपालकृत श्रावकविधि का उद्धरण भी दिया है । " वि.सं. 1334 में रचित प्रभावक चरित्र में ही सर्वप्रथम अंग, उपांग, मूल और छेद का विभाजन उपलब्ध होता है।" महोपाध्याय समयसुन्दर गणि ने भी समाचारी शतक में इसका उल्लेख किया है । " इन्हें मूलसूत्र कहने के अनेक कारण विभिन्न दार्शनिकों ने प्रस्तुत किये हैं। पर अधिक उपयुक्त यही कारण लगता है कि जिन आगमों में मुख्य रूप से श्रमण के आचार सम्बन्धी मूलगुणों का- महाव्रत, समिति, गुप्ति आदि का निरूपण है और जो ग्रन्थ श्रमण की दिनचर्या में सहयोगी बनते हैं, जिनका अध्ययन संयम के शैशव में ही आवश्यक है, उन्हें मूलसूत्र कहते हैं । मूलसूत्रों की संख्या के सम्बन्ध में भी विभिन्न मत है । समयसुन्दर गणि ने दशवैकालिक, ओघनिर्युक्ति, पिण्डनियुक्ति और उत्तराध्ययन इन चारों को मूलसूत्र माना है। मूलसूत्र की तरह छेद सूत्रों का उल्लेख भी नन्दीसूत्र में नहीं मिलता । छेद सूत्र का सर्वाधिक प्राचीन प्रयोग आवश्यक निर्युक्ति में हुआ है।" विशेषावश्यक भाष्य" और निशीथ भाष्य" में भी छेदसूत्र का उल्लेख हुआ है। आवश्यक नियुक्ति को भद्रबाहु की कृति माना जाता है और वे विक्रम की छट्ठी शताब्दी हुए हैं। इससे यही स्पष्ट होता है कि छेदसूत्र का प्रयोग मूलसूत्र से पूर्व का है । छेद सूत्र से क्या तात्पर्य है, इसका उत्तर उपलब्ध नहीं है, परन्तु जिन्हें छेदसूत्र कहते हैं, उनमें प्रायश्चित्त सम्बन्धी चर्चा है | में स्थानांग में श्रमणवर्ग के लिये पाँच प्रकार के चारित्र का वर्णन है - जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन / 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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