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अपेक्षा शक्ति एवं ऊर्जा अधिक होती है ।
प्रदेशी - भदन्त ! कोई युवक लोहे, सीसे या जस्ते का भार अच्छी तरह से उठा सकता है किन्तु वृद्धावस्था आने पर वही व्यक्ति भार वहन करने में असमर्थ हो जाता है। दोनों अवस्थाओं में जीव एक ही हो तो ऐसा क्यों होता है ? तरूणावस्था की भाँति वृद्धावस्था में भी भार वहन करने में समर्थ रहता तो अपना कथन अवश्य सत्य होता कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न है।
यदि किसी हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति के पास नई कावड हो तो वह गुरूतर भार उठाकर ले जा सकता है परन्तु यदि जीर्ण-शीर्ण कावड है, तो वह उससे भार नहीं उठा सकता। यही बात तरूण और वृद्ध के सम्बन्ध में है ।
प्रदेशी - भगवन् ! मैंने एक व्यक्ति को जीवित अवस्था में तथा मरने के बाद, दोनों ही दशाओं में तोला किन्तु दोनों के वजन में कोई अन्तर नहीं था । मृत्यु के बाद आत्मा शरीर में से निकलती है, तो उसका वजन कुछ तो कम होना चाहिये ?
केशी
श्रमण - राजन् ! वायु सहित और वायु रहित मशक में न्यूनाधिकता दृष्टिगत नहीं होती क्योंकि वायु अगुरुलघु है । उसी प्रकार जीव भी अगुरुलघु होने से जीवितावस्था और मृतावस्था में किये गये तौल से उसमें नानात्व सिद्ध नहीं होता । अतः हे प्रदेशी ! तुम आस्था रखो कि शरीर और जीव भिन्न-भिन्न है। एक नहीं है ।
हालाँकि यह तर्क अब वैज्ञानिक दृष्टि से युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि वैज्ञानिक यह मानते है कि वायु में वजन होता है और यह भी प्रयोग करके देखा गया है कि जीवित और मृत शरीर के वजन में अन्तर पाया जाता है। उस युग में सूक्ष्म तुला के अभाव के कारण यह अन्तर ज्ञात नहीं होता होगा । विमर्शणीय है कि वैज्ञानिक युग में जीवित और मृत शरीर में अन्तर पाया जाना जितना सत्य है, जीव और शरीर को भिन्न-भिन्न मानने की मान्यता भी उतनी ही सत्य है ।
प्रदेशी - हे महामुने ! एक बार मैंने एक चोर को पकड़कर उसके सभी अंगों के दो, चार यावत् असंख्य टुकड़े कर डाले तब भी मुझे जीव
370 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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