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________________ से भेरी बजाये तो तुम बताओ कि वह आवाज बाहर सुनाई देगी या नहीं ? निश्चय ही वह आवाज सुनायी देगी। राजन् ! जिस प्रकार निश्छिद्र मकान में से आवाज बाहर आती है, उसी प्रकार जीव पृथ्वीशिला तथा पर्वत को भी भेदकर बाहर जा सकता है। क्योंकि जीव अप्रतिहत गति वाला है। उल्लेखनीय है कि अब यह तर्क विज्ञान सम्मत नहीं रह गया है । यद्यपि आत्मा की अमूर्तता के आधार पर राजा के तर्क का प्रत्युत्तर दिया जा सकता है। केशी कुमार श्रमण के इस प्रत्युत्तर को सुनकर राजा ने एक अन्य तर्क प्रस्तुत किया - प्रदेशी - भगवन ! मैंने एक पुरुष को प्राण रहित करके एक लौह कुंभी में डलवा दिया तथा ढक्कन से उसे बन्द करके उस पर शीशे का लेप करवा दिया। कुछ समय पश्चात् जब उस कुंभी को खोला गया तो उसे कृमिकुल से व्याप्त देखा किन्तु उसमें कोई दरार या छिद्र नहीं था, फिर वे कीडे वहाँ कैसे आ गये ? अतः ज्ञात होता है कि जीव और शरीर भिन्न नहीं है। केशी श्रमण - राजन् ! जिस प्रकार लोहे के गोले में छेद नहीं होने पर भी अग्नि उसमें प्रवेश कर जाती है, उसी प्रकार जीव भी अनिरूद्ध गतिवाला होने से कहीं भी प्रवेश कर जाता है। इससे जीव और शरीर की एकता सिद्ध नहीं होती । प्रदेशी - हे श्रमण श्रेष्ठ ! एक व्यक्ति धनुर्विद्या में कुशल है, किन्तु वही व्यक्ति बाल्यावस्था में एक भी बाण नहीं छोड़ सकता था । यदि बाल्यावस्था और युवावस्था में जीव एक होने से एक सदृश शक्ति होती तो मैं समझता कि जीव और शरीर भिन्न है । केशी श्रमण - राजन् ! धनुर्विद्या में निष्णात कोई व्यक्ति नये धनुष बाण द्वारा जितनी कुशलता दिखा सकता है, उतनी कुशलता वह पुराने एवं जीर्ण-शीर्ण धनुष-बाण से नहीं दिखा सकता । अर्थात् धनुर्विद्या में कुशल व्यक्ति के शक्तिशाली होने पर भी उपकरणों के अभाव में वह अपनी शक्ति नहीं दिखा सकता। इसी प्रकार बाल्यावस्था में शक्ति की कमी के कारण व्यक्ति अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर सकता । युवावस्था में बाल्यावस्था की सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का तुलनात्मक अध्ययन / 369 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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