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को देखकर अपनी ममता का विसर्जन करते हुए मुझे संयम पथ की ओर अग्रसर होने की अनुमति प्रदान की। मुझे जितना गौरव अपने गुरुजनों को पाकर है, उतना ही गर्व उन जैसे माता-पिता को पाकर है ।
आभार ज्ञापन के इन क्षणों में परम आत्मीय गुरुभक्त श्री द्वारकादासजी डोसी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मेरा पावन कर्तव्य है । जिस अवधि में मैंने गुरुवर्या श्री की सान्निध्यता प्राप्त की थी, उस मुमुक्षु अवस्था एवं बाद में संयमी जीवन के दौरान उनका आत्मीय सहकार मुझे सदैव उपलब्ध होता रहा है ।
इस मंगल वेला में मेरी स्मृतियों में तरंगित हो रहा है एक पूर्णतया समर्पित, श्रद्धानिष्ठ परिवार, जिनकी सेवाएँ कहीं भी और कभी भी उपलब्ध हो सकती है। हमारे संघ को सर्वात्मना समर्पित, सरलता की प्रतिमूर्ति, सेवाभावी "जीजी" श्री पुष्पाजी का योगदान मुम्बई के दौरान ही नहीं, यत्र-तत्र - सर्वत्र उपलब्ध है। मुम्बई चातुर्मास के पश्चात् भायखला दादावाड़ी में उपधान तप की आराधना का वातावरण था । अतः मैं अपने शोध कार्य के दौरान उनके
आवास पर ही रही और उस समय उनकी व उनके सुपुत्र श्री केतन जैन एवं चेतन जैन आदि सभी की जो आत्मीयता रही, वह मेरे स्मृति कोष की अमुल्य अमानत है ।
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उपलब्धि के इन क्षणों में प्रसन्नता से अधिक मानस अवसाद ग्रस्त है। कितना अच्छा होता नियति मेरी भावनाओं से इतना अधिक खिलवाड़ न करती और मेरे जीवन के महत्त्वपूर्ण उन क्षणों में उनके मुँह से " बधाई" शब्द सुनती। उनके अभाव की मेरी यह दुनिया सर्वसम्पन्न होने पर भी आज कुछ शून्यता का अहसास कर रही है । हमारे सम्पूर्ण संघ के पितृपुरुष, वात्सल्यचेता श्री हरखचन्दजी नाहटा की पावन स्मृति को ही प्रणाम कर सन्तोष करना पड़ रहा है। बहुत अधिक वात्सल्य मिला था मुझे उनसे । आज भी उनसे जुड़ी हुई घटनाएँ मस्तिष्क में उभरकर उनके होने का सुखद अहसास करा जाती है ।
मैंने शोधग्रन्थ के लेखन में लालभाई दलपतभाई विद्या मन्दिर अहमदाबाद, हरिविहार पालीताणा, साहित्य मन्दिर पालीताणा, जहाज माण्डवला, महावीर स्वामी देरासर - मुम्बई, दादावाड़ी - पूना आदि
मन्दिर
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