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________________ प्रसन्नता की इस मंगलवेला में मुझसे भी अधिक जिनके आनन्द की कल्पना मैं कर सकती हूँ, वे है- आदरणीय, श्रद्धास्पद श्री आर. एम. कोठारी, आई.ए.एस., जोधपुर। उनका प्रोत्साहन मुझे बोर्ड (दसवीं) की परीक्षा से लेकर आज तक पूरा-पूरा उपलब्ध रहा । परीक्षा या अध्ययन सम्बन्धी कार्य में कोई भी अवरोध आया तो तुरन्त ही उन्होंने अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा लगाकर उसे दूर किया। कभी उनके उत्साह भरे सहयोग के लिये आश्चर्य होता तो कभी अनुमोदन | वैसे उनका रोम-रोम अध्ययन को ही समर्पित है, जो सर्वविदित है । मैं इन भावभरे क्षणों में उन्हें भी सम्मिलित करना चाहती हूँ । ज्ञान और वैराग्य के पूर्ण संगम, अर्हत्वाणी जिनकी जुबां के साथ आचरण में भी अभिव्यक्त है, ऐसे मेरे शोधनिर्देशक, साथ ही मेरे विरक्त भावों के विकास में सहयोगी श्री जितेन्द्रभाई, जिन्होंने अपना अनमोल समय और श्रम लगाकर मेरे शोध-ग्रन्थ को समय-2 पर जाँचा तथा उसमें आवश्यक संशोधन करवाये, के निर्मल, निश्छल सहयोग के प्रति सविनय प्रणत हूँ । मेरी शोध - यात्रा जिनकी प्रेरणा, उपालंभ एवं स्नेहसिक्त निर्देशों से गतिशील हुई, उन जैन दर्शन के गहन अध्येता, जिनवाणी को समर्पित डॉ. श्री डी.एस. बया के वात्सल्यसिक्त भावों के प्रति भी सादर कृतज्ञ हूँ । परमविदुषी, अध्ययन समर्पिता, सरलता की प्रतिमूर्ति डॉ. सुषमाजी सिंघवी की पूर्ण कृतज्ञ हूँ, जिनका स्नेहपूर्ण सहकार मुझे समय-2 पर उपलब्ध होता रहा है । वे भारतीय दर्शन की जहाँ पूर्ण विदुषी है, वहीं संस्कृत तथा न्याय विषय की विशेषज्ञा । अध्ययन और अध्यापन उनका प्राण है, तो जिनशासन उनकी धड़कन । उदयपुर चार्तुमास के दौरान मुझे उनसे अध्ययन करने का अवसर मिला था और उस दौरान जब वे विषय का प्रतिपादन करती तो लगता, माँ सरस्वती उन पर पूर्ण मेहरबान है। मैं उनके आत्मीय सहयोग के प्रति हार्दिक विनत हूँ । मैं अपने आदरणीय, भक्तिनिष्ठ, सरल स्वभावी पिताश्री बाबूलाल जी एवं माताजी अ. सौ. आदरणीया श्री कमलादेवी के प्रति जितनी भी कृतज्ञता ज्ञापित करूँ, मेरी बालचेष्टा ही होगी। उन्होंने मुझे जन्म ही नहीं दिया अपितु जीवन जीने के संस्कार भी दिये और संस्कारों के साथ ही मेरी तीव्र भावनाओं Jain Education International XXX For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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