SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो संयमी जीवन की अनुशास्ता गुरुवर्या भी हैं। मुझ पर उनकी वात्सल्य - वर्षा मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। आज मैं जो कुछ भी हूँ, उन्हीं की महती कृपा की बदौलत हूँ। मेरी हर सफलता का श्रेय उनके श्रीचरणों में समर्पित है। प्रस्तुत शोध ग्रन्थ में मेरा अपना कुछ भी नहीं है। उन्हीं की बहुश्रुतता मेरी भावचेतना में विराजमान होकर लेखनी के माध्यम से प्रवाहित हुई है। उनकी पावन प्रेरणा और पुनित प्रसाद से ही मेरी यह शोधयात्रा आज अपने मुकाम तक पहुंची है। अन्यथा मुझ में वह योग्यता कहाँ कि कुछ लिख पाऊँ? उनके उपकारों का स्मरण असीम अनुभूतियों में है। वे मेरे अपने है अत: उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर मैं अपने आप को तुच्छ ही बनाऊँगी। वे मेरे जीवन को अपनी अमीवर्षा के द्वारा सदैव हराभरा रखे, अपनी दृष्टिकृपा की मीठी छाँव के द्वारा सदैव शीतल रखे, उनकी ज्ञान-रश्मियों का उज्ज्वल-आलोक मेरे संयम पथ को सदैव आलोकित करता रहे...... इसी एकमात्र अभीप्सा के साथ गुरु चरणों में पुनश्च भाव वन्दना। कृतज्ञता ज्ञापन के इन क्षणों में मैं हार्दिक कृतज्ञ हूँ मेरी अनन्य सहयोगिनी ज्येष्ठ भगिनी आदरणीया शासनप्रभा जी म.सा. के प्रति, जिनका स्नेह-सद्भाव भरा सहकार वैराग्य अवस्था के प्रथम चरण से लेकर आज तक नि:स्वार्थ भाव से उपलब्ध हुआ है। उनका अपनत्वभाव अभिव्यक्ति का विषय नहीं, वरन् मेरी अनुभूतियों में समाहित है। साथ ही मैं कृतज्ञ हूँ गुरुनिश्रान्तेवासिनी, परमप्रिय भगिनी-वृन्द प्रज्ञांजना जी, दीप्तिप्रज्ञा जी, नीतिप्रज्ञा जी, विभांजना जी एवं विज्ञांजना जी के प्रति, जिनसे अपेक्षित स्नेहसिक्त आत्मीयता तो मिली ही, साथ ही प्रेमभरा सहयोग भी पूरा-पूरा मिला। समस्त सामुदायिक सेवाओं से मुक्त कर उन्होंने मुझे अध्ययन हेतु भरपूर समय एवं एकान्त उपलब्ध करवाया। मैं उनकी सहयोगी मानसिकता को अनुभूत तो कर सकती हूँ पर अभिव्यक्ति का जामा पहनाकर शब्दों के दायरे में समेट नहीं सकती। उनका अगाध स्नेह मुझे सदैव मिलता रहे, यही हार्दिक आकांक्षा है। विशेष रूप से उल्लेखनीय है भगिनी श्री दीप्तिप्रज्ञाजी एवं विभांजनाजी का प्रेमपूर्ण सहयोग, जो शोधयात्रा के दौरान अहमदाबाद प्रवासकाल में मिला। xxix Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy