________________
ज्योतिष आदि अष्टांग निमित्त के ज्ञाता को भूत और भविष्य की जो जानकारी होती है, वह किसी न किसी पदार्थ की सूचक होती है, पर सर्वशून्यतावाद मान लेने पर यह नहीं हो सकती।
इस प्रकार शून्यवादी अक्रियावादी कहते है कि ये विद्यायें सत्य नहीं है क्योंकि निमित्त ज्ञान भी कई बार झूठा सिद्ध होता है। तथा छींक आदि अपशुकन होने पर या मुहर्त आदि देखे बिना कहीं जाने पर भी कार्यसिद्धि होती देखी जाती है, इसलिये ज्योतिषियों के फलादेश मिथ्या बकवास है। अक्रियावादी कहते है कि हम तो इन विद्याओं को पढ़े बिना ही के लोकालोक पदार्थों को जान लेते है।
इसका उत्तर वृत्तिकार ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है - शास्त्रों का भली भाँति अध्ययन किया जाये और सोच विचार कर कहा जाये तो निमित्तादि के कथन में कोई फर्क नहीं पड़ता। शास्त्राभ्यासियों में जो छह कोटि के जो न्यूनाधिक ज्ञानी व्यक्ति बतलाये गये है, वे शास्त्र ज्ञान की न्यूनाधिकता की अपेक्षा से नहीं अपितु अध्येता पुरुषों के क्षयोपशम की न्यूनाधिकता के कारण से बताये गये है। इससे शास्त्रज्ञान को न्यूनाधिक या झूठा मानना ठीक नहीं है। प्रमाणाभास में फर्क पड़ने से सच्चे प्रमाण को मिथ्या कहना या उसमें शंका करना उचित नहीं है क्योंकि मशक में धुंआ भरकर उसका मुँह बाँधकर कोई व्यक्ति अन्यत्र ले जाकर उसका मुँह खोलकर कहे कि देखो ! इस मशक में धुंआ है किन्तु आग नहीं है, इसलिये जहाँ-जहाँ धुंआ है, वहाँ-वहाँ अग्नि है, यह अनुमान प्रमाण झूठा है, यह कहना मिथ्या है। प्रमाता पुरुष के प्रमाद से प्रमाण में दोष बतलाना ठीक नहीं है, इसी प्रकार निमित्त शास्त्र आदि का फल भी अच्छी तरह विचार कर कहा जाये तो सत्य होता है।
इस प्रकार सर्वशून्यवाद का इन प्रमाणों से खण्डन होने पर भी चावार्क शून्यबोधक शास्त्रों की दुहाई देते है, जो सर्वथा अनुपयुक्त है।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 118 : नत्यित्ति अकिरियवादी य। दशाश्रुतस्कन्ध दशा - 6, सूत्र - 3 वही सू. - 6 सूत्रकृतांग सूत्र- 1/12/4-8 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 210
अभिधम्मत्थ संगहो, 5/19 ......पारुदान परियायेन - दिठ्ठधम्मवेदनीयं 354 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org