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3. अक्रियावाद
सूत्रकृतांग सूत्र के समवसरण अध्ययन में विनयवाद के पश्चात् अक्रियावाद का निरूपण हुआ है ।
एकान्त रूप से जीव आदि पदार्थों का जिस वाद में निषेध किया जाता है तथा उसकी क्रिया, आत्मा, कर्मबंध, कर्मफल आदि बिल्कुल नहीं माने जाते, उसे अक्रियावाद कहते है ।
नियुक्तिकार ने नास्ति के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या की है । ' नास्ति के चार अर्थ फलित होते है।
1. आत्मा का अस्वीकार
2. आत्मा के कर्तृत्व का अस्वीकार
3. कर्म का अस्वीकार
4.
. पुनर्जन्म का अस्वीकार 2
आक्रियावादी को नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ, नास्तिकदृष्टि कहा भी गया है ।
अक्रियावादी आत्मा की स्थिति को स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार प्रत्येक वस्तु क्षणस्थायी है। जब प्रत्येक वस्तु एक क्षण के बाद नष्ट हो जाती है, तो क्रिया कैसे हो सकती है। यह सिद्धान्त बौद्धों के क्षणिकवादी दर्शन के बहुत निकट है। इस मतानुसार सूर्य उदय या अस्त नहीं होता । चन्द्रमा घटता या बढ़ता नहीं । नदियाँ बहती नहीं और हवा चलती नहीं ।
प्रस्तुत अध्ययन की 5वीं से 10वीं गाथा तक अक्रियावाद का प्रतिपादन इस प्रकार किया गया है- 'लव अर्थात् कर्मबन्ध की शंका करने वाले अक्रियावादी भविष्य और भूतकाल के क्षणों के साथ वर्तमानकाल का कोई सम्बन्ध न होने से क्रिया और तज्जनित कर्म बन्ध का निषेध करते है ।'
शून्यतावादी बौद्ध अस्तित्व या नास्तित्व का स्पष्ट व्याकरण नहीं करते । वे अपनी वाणी से ही निगृहीत हो जाते है । प्रश्न करने पर वे मौन रहते है। एक या अनेक, अस्ति या नास्ति का अनुवाद नहीं करते। वे अमुक कर्म को द्विपाक्षिक, अमुक कर्म को एक पाक्षिक तथा उसे छह आयतनों से होने वाला मानते है । आत्मा को अक्रिय माननेवाले वे तत्त्व को नहीं जानते हुए नाना प्रकार के सिद्धान्त प्रतिपादित करते है। उन्हें स्वीकार कर बहुत सारे मनुष्य अपार संसार में भ्रमण करते है ।
348 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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