SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो भोजन तीसरे पुट में गिरता, उसे मच्छ, कच्छों को दे देता। जो चौथे पुट में गिरता, वह स्वयं खा लेता। यह दाणामा प्रव्रज्या स्वीकार करने वालों का आचार है। विनयवाद की समीक्षा विनयवादी सम्यक प्रकार से वस्तु के यथार्थ स्वरूप को जाने बिना ही मिथ्याग्रह एवं मतव्यामोह से प्रेरित होकर कहते है- हमें अपने सभी प्रयोजनों की सिद्धि विनय से ज्ञात होती है। विनय से ही स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। यद्यपि विनय चारित्र का अंग है, किन्तु सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान के बिना विनय का कोई औचित्य नहीं है। अगर विनयवादी सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूपी विनय की विवेकपूर्वक साधना-आराधना करे, साथ ही आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़े हुए जो अरिहन्त या सिद्ध परमात्मा अथवा पंचमहाव्रतचारी निग्रंथ चारित्रात्मा है, उनकी विनय भक्ति करे तो उक्त मोक्षमार्ग के अंगभूत विनय से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। परन्तु इसे ठुकराकर अध्यात्मविहिन, अविवेक युक्त एवं एकान्त औपचारिक विनय से स्वर्ग या मोक्ष बतलाना एकान्त दुराग्रह है, मिथ्यावाद है।" सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 111 ............. विणइत्ता वेणझ्यवादी सूत्रकृतांग चूर्णिपृ. 206 - वेणइयवादिणो भणति - ण निहत्थस्स करसविपासंडस्स वा जिंदा कायव्वा, सव्वरसेव विणीय विणयेण होतव्वं । सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 208 नायाधम्मकहाओ - 1/5/59 धम्मसंगणि (ना. सं.) पृ. - 277 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा 113 (ब) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 207 षडदर्शन समुच्चय (श्री गुणरत्न सूरि दीपिका) पृ. - 29 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 113 (ब) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 206 भगवती, 3/34 भगवती, 3/102 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 213/214 समवशरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद तथा 363 मत / 347 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy