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यहाँ विनय शब्द मुनि के पंच महाव्रत और गृहस्थ के अणुव्रत के अर्थ में व्यवहत है। बौद्धों के विनय पिटक में विनय आचार की व्यवस्था है। विनय शब्द के आधार पर विनम्रता और आचार दोनों अर्थों का प्रतिपादन है। आचार पर अधिक बल देने वाली दृष्टि का विवरण बौद्ध साहित्य में भी मिलता है। जो लोग, आचार के नियमों का पालन करने मात्र से शील शुद्धि होती है, ऐसा मानते थे, उन्हें 'सीलब्बतपरामास' कहा गया है।
केवल ज्ञानवादी और एकान्त आचारवादी ये दोनों धारणाएँ उस समय प्रचलित थी। विनयवाद के द्वारा एकान्तिक आचारवाद की दृष्टि का निरूपण किया गया है। विनम्रतावाद आचारवाद का ही एक अंग है। इसलिये उसका भी इसमें समावेश हो जाता है किन्तु विनयवाद का केवल विनम्रतापरक अर्थ करने से आचारवाद का उसमें समावेश नहीं हो सकता।
नियुक्तिकार ने विनयवाद के 32 भेद इस प्रकार निर्दिष्ट किये है - देवता, राजा, यति, ज्ञाति, बुद्ध, अधम, माता और पिता इन आठों का मन से, वचन से, काया से और दान से विनय करना। इस प्रकार कुल 32 (8x4) भेद हुए।
विनयवादी दर्शन के कुछ प्रमुख आचार्य ये है - वशिष्ट, पाराशर, वाल्मीकि, व्यास, इलापुत्र, सत्यदत्त आदि।'
चूर्णिकार ने नियुक्ति गाथा (113) की व्याख्या में 'दाणामा', 'पाणामा' आदि प्रव्रज्याओं को विनयवादी बताया है तथा प्रस्तुत श्लोक की व्याख्या में आणामा, पाणामा का विनयवादियों के रूप में उल्लेख किया है।
भगवती सूत्र में आणामा और पाणामा प्रव्रज्या का स्वरूप निर्दिष्ट है। ताम्रलिप्ति नामक नगरी में तामली गाथापति रहता था। उसने ‘पाणामा' प्रव्रज्या स्वीकार की। उसका स्वरूप इस प्रकार है- पणामा प्रव्रज्या स्वीकार करने के बाद वह तामली जहाँ कहीं इन्द्र, स्कन्ध, रूद्र, शिव, वैश्रमण, दुर्गा, चामुण्डा आदि देवदेवियों तथा राजा, ईश्वर (युवराज आदि) तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, ईभ्य, श्रेष्ठि, सेनापति, सार्थवाह, कौआ, कुत्ता या चाण्डाल को देखता तो उन्हें प्रणाम करता। उन्हें ऊँचा देखता तो ऊँचा प्रणाम करता, नीचा देखता तो नीचा प्रणाम करता। पूरण गाथापति ने दाणामा प्रव्रज्या स्वीकार की। उसका स्वरूप इस प्रकार है- प्रव्रज्या के पश्चात् वह चार फुट वाला लकड़ी का पात्र लेकर बेभेल' सन्निवेश में भिक्षा के लिये गया। जो भोजन पात्र के पहले पुट में गिरता, उसे पथिको को दे देता । जो भोजन दूसरे पुट में गिरता, उसे कौए, कुत्तों को दे देता। 346 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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