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13. सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 35
सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 119 15. (अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 206-207
(च) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 209 16. सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 30
सूयगडंग सुत्तं (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) की प्रस्तावना पृ. - 9
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - भाग -1, पृ. . 177 19. दीघनिकाय - 1/2/4/31
दर्शन-दिग्दर्शन, राहुल सांकृत्यायन, पृ. - 498-499 जैनदर्शन पृ. - 390 (महेन्द्र कुमारजी) वही, पृ. - 391 सूयगडो - 1, 1/41 का टिप्पण
मज्झिमनिकाय, महाराहुलोवादसुत्त - पृ. - 53 25. भगवती - 12/218-219
तत्त्वार्थवार्तिक, भाग-2, 8/1
सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - पृ. 213 28. वही 29. प्रमाण मीमांसा, अ.-1, सू. 16
वहीं, सू. 17 31. . सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 211-241
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2. विनयवाद सूत्रकृतांग सूत्र के समवसरण अध्ययन में अज्ञानवाद के पश्चात् विनयवाद का निरूपण है।
विनयवाद् का मूल आधार विनय है।' चूर्णिकार के अनुसार विनयवादियों का अभिमत है कि किसी भी सम्प्रदाय या गृहस्थ की निन्दा नहीं करनी चाहिये। सभी के प्रति विन्रम होना चाहिये।
विनयवादी विनय को ही यथार्थ और सिद्धि का मार्ग मानते है। वे कहते है-विनय से ही स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वे गधे से लेकर गाय चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण एवं जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प आदि सभी प्राणियों को विनयपूर्वक नमस्कार करते है।
विनयवादियों के अनुसार- 'हमारा यह विनयमूलक धर्म परिगणना, परीक्षा 344 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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