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________________ पर्यन्त ही देखा जाता है। अत: सर्वज्ञ प्रणीत आगमज्ञानवादी परस्पर विरुद्धभाषी नहीं है। __ शास्त्रकार कहते है कि अज्ञानवादी अज्ञानवाद का आश्रय लेकर बिना विचारे असम्बद्ध भाषण करते है। वे मिथ्यादृष्टि सम्यग्ज्ञान से रहित है। जो यथार्थ ज्ञानी होता है, वह विचारपूर्वक बोलता है। ये अज्ञानवादी अपने शिष्यों को धर्म का उपदेश तो ज्ञान के द्वारा ही देते है तथापि ज्ञान को अनर्थ का मूल मानकर कोसते है। इस प्रकार के अज्ञान से कल्याण होना तो दूर रहा, उलटे नाना कर्मबंधन होने से जीव नाना दु:खों से पीड़ित होता है। इसलिये अज्ञानवाद अपने आप में एक घोर मिथ्यावाद है।" सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 116 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 207 समवसरन्ति जेसु दरिसणाणि दिट्ठीओ वा ताणि समोसरणाणि । सूयगडो -1, 12/1 चत्तारि समोसरणाणिमाणि, पावादया जाइं पुढो वयंति। किरियं अकिरियं विणयं ति तइयं, अण्णाणमाहंसु चउत्थमेव ॥ समवायांग, द्वादशांगागणिपिटक - सूत्र - 516 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 118 अत्थित्ति किरियवादी, वयंतिण स्थित्ति अकिरियवादी य। अण्णाणी अण्णाणं विणइत्ता वेणइयवादी। सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 208 सच्चं मोसं ---- कुत्ता अण्णाणिया। इदाणी वेणइयवादी - जेमे जणा घेणइया। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 214 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 208 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 214 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 212 - एतेषां अज्ञानिका एवं सर्वालापितयाऽत्यन्तमसंबद्धा अतस्तानेवादावाह। सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 207 - ते तु मिगचारियादयो अडवीए पुष्पफलभक्खिणो अच्चादि (अत्यागिन:) अण्णाणिया । (अ). सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 35 : सम्यग्ज्ञान विरहिता: श्रमणा: ब्राह्मणाः। (ब). वही, पत्र- 217 : शाक्या अपि प्रायशोऽज्ञानिकाः। (स) वही, : अज्ञानं एव श्रेय इत्येवं वादिनः। 12. समवशरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद तथा 363 मत / 343 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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