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5. घट यहाँ हो सकता है, (स्यादस्ति) - क्या यह कहा जा सकता है ? नहीं, घट यहाँ हो सकता है, यह नहीं कहा जा सकता । (स्याद् नास्ति अवक्तव्य)
_6. घट यहाँ नहीं हो सकता है, (स्यान्नास्ति) - क्या यह कहा जा सकता है ? नहीं, घट यहाँ नहीं हो सकता, यह नहीं कहा जा सकता। (स्याद् नास्ति अवक्तव्य)
7. घट यहाँ हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है- क्या यह कहा जा सकता है ? नहीं, घट यहाँ हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है, यह नहीं कहा जा सकता। (स्याद् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्य।)
इस प्रकार एक भी सिद्धान्त की स्थापना न करना, जोकि संजय का वाद था, उसी को संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने पर जैनों ने अपना लिया
और उसके चतुर्भगी न्याय को सप्तभंगी में परिणत कर दिया। 20 स्याद्वाद के परिप्रेक्ष्य में पं. राहुल की मिथ्याधारणा की समीक्षा
1. संजय वेलट्ठिपुत्त के चार अंगवाले अनेकान्तवाद को लेकर उसे सात अंगवाला किया गया है।
___ 2. एक भी सिद्धान्त की स्थापना न करना, जो कि संजय का वाद था, उसी को संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने पर जैनों ने अपना लिया।
ये दोनों स्थापनाएँ बहुत ही भ्रामक और वास्तविकता से परे है। पण्डित राहुल ने उक्त सन्दर्भ में सप्तभंगी और स्याद्वाद के रहस्य को न समझकर केवल शब्द साम्य देखकर एक नये मत की सृष्टि की है। यह तो ऐसा ही है - जैसे कोई कहे कि 'भारत में रही परतन्त्रता को परतन्त्रता विधायक अंग्रेजों के चले जाने पर भारतीयों ने उसे अपरतन्त्रता (स्वतन्त्रता) के रूप में अपना लिया क्योंकि अपरतन्त्रता में भी पर तंत्रता' ये पाँच अक्षर तो मौजूद है ही। जितना परतन्त्रता का अपरतन्त्रता से भेद है, उतना ही संजय के अनिश्चय और अज्ञानवाद का स्याद्वाद से अन्तर है। स्याद्वाद संजय के अज्ञान और अनिश्चय का ही उच्छेद करता है। साथ ही साथ तत्त्व में जो विपर्यय और संशय है, उसका भी समूल छेदन करता है। यह देखकर तो और भी आश्चर्य होता है कि राहुल अनिश्चिततावादियों की सूची में संजय के साथ निग्गंठ नातपुत्त महावीर का नाम भी लिख जाते है तथा (पृ. 491 में) संजय को अनेकान्तवादी भी । क्या इसे धर्मकीर्ति के शब्दो में 'धिग् व्यापकं तमः' नहीं कह सकते ?21
338 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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