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3. सदा
जीव सदवक्तव्य है, यह कौन जानता है और यह जानने से भी क्या प्रयोजन है? जीव असदवक्तव्य है, यह कौन जानता है और यह जानने से भी
क्या प्रयोजन है ? 7. जीव सदसदवक्तव्य है, यह कौन जानता है और यह जानने से
भी क्या प्रयोजन है ? अजीव, पुण्य, पाप आदि नौ तत्वों के इसी प्रकार भंग बनाने पर कुल 63 भंग होते है। ___ 1. सत् पदार्थ की उत्पत्ति कौन जानता है और जानने से भी क्या
लाभ है ? .. 2. असत् पदार्थ की उत्पत्ति कौन जानता है और जानने से भी क्या
लाभ है ? सदसत् पदार्थ की उत्पत्ति कौन जानता है और जानने से भी क्या
लाभ है ? 4. अवक्तव्य भाव की उत्पत्ति कौन जानता है और उसे जानने से
भी क्या लाभ है ? इन चार भेदों को 63 के साथ मिलाने पर कुल 67 भेद होते है।
अज्ञानवाद का वर्णन इसी श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में भी विस्तृत रूप से मिलता है। नियुक्तिकार ने समय अध्ययन के द्वितीय उद्देशक की नियुक्ति में नियतिवाद, अज्ञानवाद, ज्ञानवाद तथा शाक्यमतानुसारी कर्मचयवाद इन चार अर्थाधिकारों का कथन किया है।'' नियुक्तिकार निर्दिष्ट अज्ञानवाद की चर्चा चूर्णि तथा वृत्ति में कहीं भी दिखायी नहीं देती परन्तु द्वितीय उद्देशक की 6ठीं गाथा से जिस वाद का प्रारम्भ होता है तथा 14वीं गाथा से जिसका खण्डन शुरू होता है, वृत्तिकार ने उसे अज्ञानवाद नाम दिया है। चूर्णिकार का मत है कि 14वीं गाथा से 23वीं गाथा तक अज्ञानवाद की चर्चा है। परन्तु इन गाथाओं को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि नियतिवाद, अज्ञानवाद, संशयवाद और एकान्तवाद - इन चारों को शास्त्रकार ने चर्चा का विषय बनाकर जैनदर्शन के अनेकान्त सिद्धान्त की कसौटी पर कसा है।
शास्त्रकार 14वीं गाथा में कुछ अज्ञानवादी श्रमणों तथा ब्राह्मणों की मनोदशा को उजागर करते हुए कहते है कि इस जगत् में कोई कुछ भी नहीं जानता।
समवशरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद तथा 363 मत / 335
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