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________________ प्रात:कालीन स्नान आदि से मोक्ष नहीं होता। क्षार तथा नमक के न खाने से भी मोक्ष नहीं होता। वे अन्यतीर्थी मोक्षवादी मद्य, माँस तथा लहसुन खाकर मोक्ष की परिकल्पना कैसे करते है.77 इसी सन्दर्भ में नियुक्तिकार ने नामोल्लेखपूर्वक कुशीलों का प्रतिपादन किया है। महावीरकालीन इन धर्म सम्प्रदायों के आचार का वर्णन ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने इनके आचार का कुछ विस्तार से वर्णन किया है 1. गौतम - ये मशकजातीय धर्म सम्प्रदाय के संन्यासी गोव्रतिक हैं, जो बैल को नाना प्रकार से प्रशिक्षित करते है और फिर उसके साथ घर-घर जाकर बैल की तरह रंभाते है और अपने हाथ में रहे हुए छाज (सूर्प) में धान्य इकट्ठा करते है। ये ब्राह्मण तुल्य जाति के होते है। 2. चण्डी देवगा - ये प्राय: अपने हाथ में चक्र रखते है। चूर्णिकार ने उसके स्थान पर 'रंड देवगा' शब्द माना है।1 3. वारिभद्रक - ये पानी पर छा जाने वाली शैवाल-काई खाते है, हाथ, पैर आदि बार-बार धोते है। बार-बार स्नान और आचमन करते है और तीनों संध्याओं में जल में डूबकियाँ लगाते है।12 4. अग्निहोमवादी - उस समय में विभिन्न प्रकार के तापस और ब्राह्मण हवन द्वारा मोक्ष बतलाते थे। उनके अनुसार जो व्यक्ति स्वर्ग आदि फल की आकांक्षा न करता हुआ समिधा, घृत आदि द्रव्य विशेष द्वारा अग्नि को तृप्त करता है, हवन करता है, वह मोक्ष के लिये पुरुषार्थ करता है। जो किसी मनोकामना से हवन करता है, वह अपने अभ्युदय को सिद्ध करता है। जैसे अग्नि स्वर्णमल को जलाने में समर्थ है, उसी प्रकार वह मनुष्य के आन्तरिक पापों को जलाने में भी समर्थ है। 5. जलशौचवादी - भागवत, परिव्राजक आदि सजीव जल के उपयोग से मोक्ष की स्थापना करते थे। बार-बार हाथ-पैर धोने, स्नान करने में रत रहते थे। वे मानते थे कि जैसे जल बाह्य मल को दूर करता है, उसी प्रकार आन्तरिक शुद्धि भी जल से ही होती है। सूत्रकृतांग के तृतीय तथा सप्तम अध्याय के विश्लेषण से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि उस समय में मोक्ष प्राप्ति के कारण कितने विचित्र और विकृत रूप ले रहे थे। इन कारणों को सूत्रकार ने तीन प्रकार से वर्गीकृत किया है - सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 327 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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