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________________ में प्रत्येकबुद्ध नमि का कथन है। ये किसके तीर्थकाल में हुए, यह ज्ञात नहीं है। उत्तराध्ययन के नौवे अध्ययन नमि प्रव्रज्या में अभिनिष्क्रमण के समय ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र और नमि के बीच हुए संवाद का सुन्दर संकलन है। इनके पिता का नाम युगबाहु और माता का नाम मदनरेखा था । ' 2. रामगुप्त ये पार्श्वनाथ के तीर्थकाल में होने वाले प्रत्येकबुद्ध है । ' ऋषिभाषित के तीसवें अध्ययन में रामपुत्र अर्हतर्षि के वचन संकलित है।' इस गद्यात्मक अध्ययन में केवल तीन गद्यांश है । वृत्तिकार ने 'रामउत्ते' का संस्कृत रूप रामगुप्त किया है।' प्राकृत 'उत्त' शब्द के तीन संस्कृत रूप हो सकते है - उप्त, गुप्त एवं पुत्र। - 3. बाहुक - ये अरिष्टनेमि के समय में हुए एक प्रत्येकबुद्ध है।' ऋषिभासित के 14वें अध्ययन में इनके सुभाषित संकलित है।' यह अध्ययन भी गद्यात्मक है । नल का एक नाम बाहुक भी है। ' 10 4. तारागण - ऋषिभासित के 36 वें अध्ययन में इनके विचार उल्लिखित है। इसमें 17 पद्य है। प्रारम्भ में उनके नाम के आगे 'वित्तण' शब्द है ।" ऋषिभासित संग्रहणी गाथा में इनका उल्लेख 'वित्त' नाम से किया गया है । " परन्तु 'वित्त' शब्द उनका विशेषण ही होना चाहिये । वृत्तिकार ने 'नारायण' पाठ माना है । 1 2 5. आसिल- देविल ऋषिभासित के तीसरे अध्ययन का नाम 'दविलज्झयणा' है। इसके प्रारम्भ में 'असिएण दविलेण अरहता इसिणा बुइतं' ऐसा पाठ है। यहाँ असित गौत्र एवं दविल ऋषि का नाम हो सकता है, ऐसा पुण्यविजयजी म. ने माना है ।" वृत्तिकार ने आसिल तथा देविल को पृथक्पृथक् ऋषि माना है।'' ये अरिष्टनेमि के तीर्थकाल में हुए प्रत्येकबुद्ध है।'' महाभारत में अनके स्थलों पर 'असितदेवल' नामक प्रसिद्ध ऋषि का उल्लेख प्राप्त होता हैं।'' याज्ञवल्क्य की अपरादित्य रचित व्याख्या में देवल ऋषि का संवाद उद्धृत है ।" महाभारत के शान्तिपर्व में देवल- नारद संवाद का भी उल्लेख प्राप्त होता है। वृद्ध देवल के सम्मुख उपस्थित होकर नारद ने भूतों की उत्पत्ति और प्रलय के विषय में जिज्ञासा प्रकट की थी और देवल महर्षि ने उसका समाधान दिया था। इसी प्रकार वायुपुराण में भी देवल के उद्धरण प्राप्त होते है ।" ये सांख्य दर्शन के एक आचार्य के रूप में प्रसिद्ध थे, जो सांख्यकारिका के रचयिता ईश्वरकृष्ण से पहले हो चुके थे । " 6. द्वीपायन - ये महावीर के तीर्थकाल में हुए प्रत्येकबुद्ध हैं। 20 ऋषिभासित सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 325 Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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