________________
में ही डाल देने वाले गधे की भाँति वे अस्नान आदि व्रतों को बीच में ही छोड़ देते है। तथा कठिनाई के समय मोक्ष की ओर प्रस्थान करने वाले मुमुक्षुओं से पंगु की भाँति पीछे रह जाते है।
यहाँ सूत्रकार ने शिथिल भिक्षु के आचरण को गर्दभ की उपमा द्वारा उपमित करते हुए सागोपांग वर्णन प्रस्तुत किया है। जैसे गधा अधिक भार को सहन न कर सकने के कारण मार्ग के बीच में ही डालकर गिर जाता है, उसी प्रकार शिथिल आचरण वाले भिक्षु महाव्रत रूपी संयम के भार को वहन करने में असमर्थ हो जाते हैं।
इस विवेचन का फलितार्थ यह है कि कुछ शिथिल श्रमण यह कहते है कि प्राचीन काल में कुछ ऐसे तपस्वी भी हुए है, जो उपवासादि तप न करते, उष्ण जल न पीते, फल, फूल आदि खाते, फिर भी उन्हें जैन प्रवचन में महापुरुष के रूप में स्वीकार किया गया है। इतना ही नहीं, उन्हें मुक्त भी माना गया है। इन महापुरुषों का महापुरुष एवं अर्हत् के रूप में ऋषिभासित नामक अतिप्राचीन जैन प्रवचनानुसारी श्रूत में स्पष्ट उल्लेख है। इसके आधार पर शिथिल श्रमण यह कहने के लिये तैयार होते है कि यदि ये लोग ठण्डा पानी पीकर, निरन्तर भोजी होकर एवं फलफूलादि खाकर महापुरुष बने है एवं मुक्त हुए है, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते ? इस प्रकार के हेत्वाभास द्वारा ये शिथिल श्रमण आचार एवं विचार से भ्रष्ट होते है।
प्रस्तुत दो श्लोकों में 7 ऋषियों के नाम गिनाये गये है - 1. वैदेहि नमि 2. रामगुप्त 3. बाहुक 4. तारागण 5. असिल-देविल 6. द्वैपायन और 7. पाराशर। 'इह संमया' इस पद के द्वारा सूत्रकार ने यह सूचित किया है कि ये महापुरुष जैन ग्रन्थों में वर्णित है। तथा 'अणुस्सुयं' पद के द्वारा भारत आदि पुराणों में भी इनके वर्णन की ओर संकेत किया है।
चूर्णिकार के अनुसार ये सभी राजर्षि और प्रत्येकबुद्ध थे। इनमें से वैदेहि नाम की चर्चा उत्तराध्ययन के नौवें अध्ययन में प्राप्त है। शेष राजर्षियों की चर्चा ऋषिभासित नामक ग्रन्थ में है। किन्तु वर्तमान में उपलब्ध ऋषिभासित ग्रन्थ में पाराशर ऋषि का नाम प्राप्त नहीं है। इस ग्रन्थ में सबके नाम से एक-एक अध्ययन है और इन अध्ययनों में उनके विशिष्ट विचार संग्रहित है।
1. वैदेहि नमि - विदेह राज्य में दो नमि हुए है। दोनों अपने-2 राज्य को छोड़कर प्रव्रजित हुए। एक तीर्थंकर हुए, एक प्रत्येक बुद्ध। प्रस्तुत सन्दर्भ 324 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
national Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org