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________________ 16. 17. पश्चत्यसौ तावन्मानं कालं च जागर्ति, तत्र च पश्यत्यसाविति। तदेवं भूतो बहुधा लोकवाद: प्रवृतः। (ख) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या प्र.श्रु. पृ. - 267 आचारांग सूत्र - 1/9/1/54 अदुथावरा तसत्ताए, तस जीवा य थावरत्ताए। अदुवा सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणा कप्पिया पुढो वाता॥ सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 50 स्मृति : अन्तःप्रज्ञा भवन्त्येते, सुखदुःखसमन्विता। शरीरजै कर्मदोषैर्यान्ति स्थावरतां नराः।। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 50 वही वही वही, पृ. 51 18. 19. 20. 21 22. 12. सूत्रकृतांग में विभिन्न मोक्षवादियों की मिथ्याधारणाएँ सूत्रकृतांग सूत्र में विभिन्न दार्शनिक मतों का विस्तार से वर्णन उपलब्ध होता है। इनके अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि महावीर का युग सम्प्रदायों की बहुलता का युग रहा होगा । इन सभी की चिन्तनधारा जीव, जगत और ईश्वर अथवा मोक्ष को लक्ष्य में रखकर ही प्रवाहित हुई। सूत्रकृतांग में इन सभी दार्शनिक तत्त्वों के विश्लेषण के साथ कुछ ऐसी विचित्र मान्यताओं का भी उल्लेख पाया जाता है, जो इन सभी से हटकर नित्यभोजी, सचित्त जल एवं वनस्पति भक्षण द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति का कथन करते है। तृतीय उपसर्ग परिज्ञा अध्ययन में इनका वर्णन इस प्रकार प्रस्तुत हुआ है -1 ___(कुछ शिथिल श्रमण ऐसा कहते है) अतीतकाल में कुछ ऐसे भी तपस्वी हुए है, जो सचित्त जल से स्नान आदि करते हुए सिद्धि को प्राप्त हुए है। विदेही नमि राजा ने भोजन छोड़कर, (राजर्षि) रामपुत्र ने भोजन करते हुए तथा बाहुक और तारागण ऋषि ने केवल जल पीते हुए मोक्ष को प्राप्त किया था। इसी प्रकार असिल- देविल, द्वैपायन और पाराशर आदि महर्षियों ने सचित्त, बीज, जल और हरित का सेवन करते हुए सिद्धि प्राप्त की थी। ऐसा सोचकर मन्दबुद्धि भिक्षु विषाद को प्राप्त होते हैं तथा भार को बीच सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 323 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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