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________________ समय-समय पर मेरे शोध निर्देशक श्री डॉ. जितेन्द्र भाई का आत्मीय एवं सफल मार्गदर्शन....! निश्चय ही ये सब कुछ मेरे शोध कार्य को आगे बढ़ाने में खूब उपयोगी रहे। अहमदाबाद प्रवास लगभग चार माह का रहा। तीन अध्याय तक का लेखन यहाँ सम्पन्न हो गया पर पुन: विहार के कारण लेखन में अवरोध आ गया। आगामी चातुर्मास मुम्बई होने से हमें अक्षय तृतीया के बाद तुरन्त ही विहार करना पड़ा। - मुम्बई चातुर्मास में पर्युषण पश्चात् का सारा समय शोध ग्रन्थ को समर्पित रहा। फिर भी कभी सम्बन्धित साहित्य का अभाव, तो कभी व्यवस्थाओं में बीतता समय। मुम्बई में चार्तुमास बाद भी दो माह तक उपधान तप के कारण रहना हो गया, उस दौरान मेरा शोध ग्रन्थ लगभग वहाँ पूरा हो गया। उसके बाद का कार्य भी कम न था। प्रफ संशोधन, प्रस्तावना, सन्दर्भ ग्रन्थसूची, विषयानुक्रमणिका आदि सारा कार्य विहार यात्रा के दौरान सम्पन्न हो गया। इस प्रकार मेरी यह शोधयात्रा प्रारम्भ गुजरात में हुई, पूरी महाराष्ट्र में हुई और उसका शेष कार्य कर्णाटक में सम्पन्न हुआ। तीन राज्यों की यात्रा करते हुए मेरी इस शोधयात्रा को विराम मिला है। ____ यह तो हुई मेरी शोधयात्रा की चर्चा पर इस शोधयात्रा के सहयोगी भी कम न थे। सर्व प्रथम मैं प्रणत हूँ मेरी आस्था के दीप, परम पूज्य गुरुदेव उपाध्यायप्रवर श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. के प्रति, जो हजारों की भीड़ और हजार व्यस्तताओं के बीच भी प्रतिदिन मुझे "शोध कार्य ने प्रगति की कितनी सीढ़ियाँ पार की' यह पूछना, समय-समय पर इसे देखना, आवश्यकता होने पर समझाना नहीं भूलते थे। मुझे आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देकर उन्होंने एक ओर जहाँ गुरु की गरिमा को गौरवान्वित किया, तो वहीं बड़े भाई होने के नाते वात्सल्य भरे दायित्व को भी बखूबी निभाया। मेरी भावभरी अगणित वन्दना है पूज्य चरणों में। इन क्षणों में अपने प्रिय अनुज स्वाध्याय प्रेमी, मितभाषी श्री xxvii Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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