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वही, : प. 44 - शस्त्रोषद्यादिसम्बन्धाच्चैत्रस्य व्रणरोहणे।
असम्बद्धस्य किं स्थाणो: कारणत्त्वं न कल्प्यते॥ भगवद्गीता, अ. - 5 श्लोक - 14 :
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।
न कर्मफल संयोग स्वभावस्तु प्रवर्तते॥ सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 44, सत्वरजसतमसां साम्यावस्था प्रधानमित्युच्यते, न चाविकृतात्प्रधानान्महदादेरुत्पत्तिरिष्यते भवव्यः, न च विकृतं प्रधानव्यपदेश मास्कन्दतीत्यतो न प्रधानान्महदादेरुत्पत्तिरिति।
वही
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वही ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत बाहू राजन्य कृतः। उस्तदस्य यद् वैश्य: पदभ्यो शूद्रोऽजायात॥ सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र, पृ. - 45 भगवती सूत्र, - 1-6 उत्तराध्ययन सूत्र, 36-2 : जीवा चेव अजीवाय एस लोगे वियाहिए। प्रमाण न. 7-20 : धर्माधर्माकाश .......दित्यादिर्यथा (अ) मूलाचार, 712 : लोगो अकिठिमो खलु (ब) द्रव्यविज्ञान, पृ. 18 (अ) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र, 15 (ब) First step to Jainism, Part - 1, Page No. - 9
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10. अवतारवाद सूत्रकृतांग सूत्र में विभिन्न वादों के प्रस्तुतीकरण के क्रम में अवतारवाद का भी निरूपण हुआ है। प्रथमश्रुतस्कन्ध में अवतारवाद का निरूपण है, जिसे चूर्णिकार ने त्रैराशिक सम्प्रदाय का अभिमत माना है। परन्तु वृत्तिकार इसे गोशालक का मत बताते है। आचार्य हरिभद्र ने भी त्रैराशिक का अर्थ आजीवक सम्प्रदाय किया है। इस प्रकार पूर्वोक्त कथनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि गोशालक आजीवक मत के आचार्य थे।
त्रैराशिक का अर्थ है - जो मत या वाद सर्वत्र तीन राशियाँ मानता है - जीव राशि, अजीव राशि और नो जीव राशि। यहाँ शास्त्रकार ने त्रैराशिकों के मतानुसार आत्मा की तीन राशियों का कथन किया है, जो इस प्रकार है
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 309
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