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(5) मार (यम) द्वारा जगत्कर्तृत्व की मान्यता का खण्डन
स्वयंभू द्वारा मार (यम) की उत्पत्ति की गयी, जो माया द्वारा लोक का संहार करता है, यह भी व्यर्थ का अपलाप है। जब स्वयंभू ही जगत का कर्त्ता सिद्ध नहीं होता तो यमराज और माया, जो उनकी सन्तानें है, उनका अस्तित्व कहाँ से आयेगा। 12
(6) अण्डे से जगत की उत्पत्ति भी कपोल कल्पना ही है
अण्डे से जगत की रचना मानना भी असमीचीन है। जब जगत् पंचमहाभूतों से बिल्कुल रहित था, उसमें कोई भी चीज नहीं थी, तब अण्डा कहाँ से आया ? फिर जिस जल में स्वयंभू ने अण्डा उत्पन्न किया, वह जल जिस प्रकार अण्डे के बिना ही उत्पन्न हुआ था, उसी प्रकार लोक को भी अण्डे के बिना उत्पन्न हुआ मानने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिये । तथा ब्रह्मा जब तक अण्डा बनाता है, तब तक वह इस लोक को ही क्यों नहीं बना देता ? अत: युक्ति से विरुद्ध अण्डे की टेढी-मेढी कष्टदायी कल्पना का क्या प्रयोजन ?
`कुछ प्रावादुकों के अनुसार ब्रह्मा अण्डे के बिना ही सृष्टि की रचना करता है । जैसे ब्रह्माजी के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, उरु से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुये है ।" यह कथन भी अनुभवविरूद्ध है क्योंकि आज तक मुख से किसी की उत्पत्ति नहीं देखी गयी है । यदि ऐसा होने लगेगा तो सभी का उत्पत्ति स्थान ब्रह्मा होने से ब्राह्मणादि (वर्णों) का परस्पर भेद नहीं रहेगा। तथा ब्राह्मणों में भी कठ, तैत्तिरीयक, कलाप आदि भेद नहीं होंगे क्योंकि ये सभी ब्राह्मण एक ही ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होंगे। फिर तो उपनयन, विवाहादि संस्कार भी नहीं हो सकेंगे। बहिन के साथ विवाह की आपत्ति आयेगी । इस प्रकार अनेक दोषभूत होने से ब्रह्मा के मुख आदि अंगों से सृष्टि की उत्पत्ति मानना अनुपयुक्त ही होगा। 14
लोक का कर्त्ता ईश्वर असिद्ध होने से
सुख-दुःख का कर्त्ता ईश्वर भी असिद्ध है
प्रस्तुत वाद में विभिन्न जगतकर्तृत्ववादियों ने अपने-अपने अभिप्रायानुसार देव, ब्रह्मा, स्वयंभू, ईश्वर, प्रकृति आदि विभिन्न तत्त्वों को जगतकर्ता सिद्ध करने का प्रयास किया है तथा इसे युक्तिपूर्वक स्थापित करने के लिये अनेक आधारहीन
304 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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