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________________ प्रथम अध्याय में आगम साहित्य का वर्णन करते हुए उसके विस्तृत परिचय को प्रस्तुत किया है। इसमें आगम की परिभाषा, आगमों के रचयिता, आगमों का वर्गीकरण एवं उनकी संख्या, आगमों की वाचनाएँ, उनका उपलब्ध व्याख्यात्मक साहित्य एवं विभिन्न साहित्यकारों द्वारा उनका अनुवाद आदि विषयों का समावेश किया गया है । द्वितीय अध्याय में सूत्रकृतांग के विभिन्न अर्थ प्रस्तुत करते हुए सूत्रकृतांग की मूल विषयवस्तु का संक्षिप्त परिचय देने के साथ उससे सम्बन्धित अन्य नियुक्ति, चूर्णि, टीका आदि का वर्णन हुआ है। साथ ही ग्रन्थ के उपलब्ध लगभग अनुवादों और प्रकाशनों का नामोल्लेख भी किया है। तृतीय अध्याय में सूत्रकृतांग के दोनों श्रुतस्कंधों के तेबीस अध्ययनों के परिचय को समेटने का प्रयास किया है । चतुर्थ अध्याय में सूत्रकृतांग में वर्णित समस्त दार्शनिक वादों का तार्किक एवं विशद विवेचन करते हुए उनकी विस्तृत समीक्षा की गयी है । पंचम अध्याय में सूत्रकृतांग के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समवसरण अध्ययन में प्रतिपादित चार वाद एवं उस समय चल रहे 363 मतों का विस्तृत विश्लेषण करने के साथ ही उनका प्रमाणपुरस्सर तर्कों द्वारा खण्डन किया गया है। षष्ठ अध्याय में, जिन दार्शनिक मतों का सूत्रकृतांग में वर्णन है, उनका अन्य जिन-जिन अंग आगमों में वर्णन उपलब्ध होता है, उनकी समीक्षापूर्वक विवेचना की गयी है । सप्तम अध्याय में सम्पूर्ण सूत्रकृतांग पर अपना चिन्तन प्रस्तुत करते हुए उपसंहार रूप सार लिखा गया है। इस प्रकार सप्तअध्यायमय इस शोधग्रन्थ के समापन की वेला में प्रसन्नता होना स्वाभाविक है। जब मैंने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर से एम. ए. का अध्ययन सम्पन्न किया तो मेरे सामने विषय चुनाव की जटिल समस्या उत्पन्न हुई । जटिल इसलिए कि मैं आगम साहित्य में भी प्रविष्ट होना चाहती Jain Education International XXV For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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