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________________ ओर ले जा सके, उनका जीवन अज्ञान के अँधेरे से ज्ञान प्रकाश की ओर मोड़ सके। युग का पूण्य था। तत्कालीन जनता का सौभाग्य था कि उन्हें उस जहर भरे वातावरण में साक्षात् अमृतकुम्भ मिल गया। अलौकिक महापुरुष की ही नहीं, साक्षात् तीर्थंकर की पावन सन्निधि प्राप्त हो गयी। निःसन्देह परमात्मा महावीर उस विषम युग के लिये अमृतमय वरदान बनकर अवतरित हुए थे। परमात्मा महावीर का साधनाकाल जहाँ उनके प्रखर पुरुषार्थ और आश्चर्यजनक सहिष्णुता को अभिव्यक्त करता है, वहीं उनका केवलज्ञान के बाद का समय उनकी सहज करूणा को रेखांकित करता है। स्वयं तो परिपूर्ण और कृतकृत्य हो चुके थे। करने योग्य कुछ भी शेष न था। फिर भी उन्होंने लगभग तीस वर्ष तक सतत् इस धरा को अपनी वाणी की मेघ-वर्षा के द्वारा उर्वरा बनाया। इसमें मात्र उनकी सहज करूणा ही अभिव्यक्त होती है। __ जिसे द्वादशांगी कहा जाता है, वह परमात्मा महावीर की मूलवाणी है। चूँकि उस समय गुरु परम्परा से ही ज्ञान प्राप्ति की परम्परा थी, अत: ये सारे आगम परमात्मा महावीर की वाणी होते हुए भी संकलित कहे जाते है। परम उपकारी देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण द्वारा भविष्य की कल्पना करते हुए तीर्थंकर की वाणी को सुरक्षित करने के लिए लेखन की परम्परा को प्रारम्भ किया गया। __वर्तमान का यह युग जितना भगवान महावीर का कृतज्ञ है, उतना ही देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण का भी। मैं असीम आस्था एवं कृतज्ञ भावों से भरकर परमात्मा महावीर के पावन श्री चरणों मे वन्दनाएँ समर्पित करती हैं और उतनी ही प्रणतियाँ उसी भावना से आर्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के चरणों में भी। प्रस्तुत आगम उसी द्वादशांगी का द्वितीय आगम है। जैसे-जैसे सूत्रकृतांग के सागर में मुझे डूबने का सौभाग्य मिला, मैं आध्यात्मिक रहस्यों के मोती बटोरती रही और अपने विषय चुनाव पर आह्लादित होती रही। ____ मैंने इस शोध ग्रन्थ को कुल सात अध्यायों में विभाजित किया है, जिनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - xxiv Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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