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उत्पन्न होती है, जैसे पुरुष से केश लोम उत्पन्न होते है, उसी प्रकार उस नित्य ब्रह्म (ईश्वर) से यह समस्त विश्व उत्पन्न होता है। तैत्तिरीयोपनिषद में कहा है - जिस ब्रह्म (ईश्वर) से ये प्राणी उत्पन्न होते है, जिससे ये भूत (प्राणी) उत्पन्न होकर जीवित रहते है, जिसके कारण प्रयत्न (हलन-चलनादि क्रियाएँ) करते है, जिसमें विलीन हो जाते है, उन सबका तादात्म्य कारण ईश्वर है।'
श्वेताश्वतरोपनिषद् में बताया गया है कि वही देवों का अधिपति है, उसी में सारा लोक अधिष्ठित है। वही इस द्विपद-चतुष्पद लोक पर शासन करता है। वही विश्व का एक मात्र परि-वेष्टिता, भुवन का गोप्ता, विश्वाधिप एवं समस्त प्राणियों में गूढ है।'
बृहदारण्यक के अनुसार - उस ब्रह्म के दो रूप है - मूर्त और अमूर्त अथवा मर्त्य और अमृत, जिसे यत् और त्यत् कहते है। वही एक ईश्वर सब प्राणियों के अन्तर में छिपा हुआ है।"
वेदान्ती जगत्कर्ता के रूप में ईश्वर को सिद्ध करने के लिये अनुमान प्रमाण का भी प्रयोग करते है -
ईश्वर जगत् का कर्ता है। (प्रतिज्ञा) क्योंकि वह चेतन है। (हेतु)
जो-जो चेतन होता है, वह-वह कर्ता होता है। जैसे कुम्हार घट का कर्ता है। (उदाहरण)।
द्वितीय ईश्वरकर्तृत्ववादी नैयायिक मत अक्षपाद ऋषि द्वारा प्रतिपादित है। इस मत के आराध्य शिव माहेश्वर है। माहेश्वर ही इस चराचर जगत् का निर्माण एवं संहार करता है। .. नैयायिक भी अनुमान प्रमाण के आधार पर ईश्वर को जगत्कर्ता के रूप में सिद्ध करते है - पृथ्वी, पर्वत, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, शरीर, इन्द्रियाँ आदि सभी पदार्थ किसी बुद्धिमान कर्ता द्वारा बनाये गये है। क्योंकि वे कार्य है। जो-जो कार्य होते है, वे किसी न किसी बुद्धिमान द्वारा ही निर्मित होते है। वह बुद्धिमान् जगत् का कर्ता ईश्वर ही है। जो बुद्धिमान् कर्ता द्वारा उत्पन्न नहीं किये गये है, वे कार्य नहीं है. जैसे- आकाश। ___यहाँ व्यतिरेक व्याप्ति के द्वारा ईश्वर की जगत्कर्ता के रूप में सिद्धि की गयी है।
नैयायिक ईश्वर को जगत्कर्ता मानने के साथ उसे एक, सर्वव्यापी, सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 291
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