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चूँकि वैदिक युग में मनुष्यों का एक वर्ग अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, आकाश, विद्युत्, दिशा आदि प्राकृतिक तत्त्वों का उपासक था अतः प्रकृति को ही देव मानकर पूजता था और यह विश्वास रखता था कि इस विराट् ब्रह्माण्ड की रचना सामान्य प्राणी के द्वारा नहीं हो सकती । देव अपनी शक्ति के द्वारा ही ऐसी अदभुत रचना कर सकता है, अत: यह लोक देव द्वारा बीज की तरह बोया हुआ है अथवा किसी देव द्वारा रक्षित है अथवा यह जगत् तथाकथित देव का पुत्र है, जिसने इसको पैदा किया है । 2
2. ब्रह्मरचित लोक
'बंभउत्ते' यह लोक ब्रह्मा द्वारा उप्त अर्थात् बीज वपन किया हुआ है। कुछ प्रावादुक ऐसा मानते है कि ब्रह्मा जगत् का पितामह है । जगत् सृष्टि के आदि में वह अकेला था । उसने प्रजापतियों को, फिर क्रमश: संसार को बनाया । ' चूर्णिकार ने इसके भी तीन विकल्प प्रस्तुत किये है - 1
(1) ब्रह्मउप्त
(2) ब्रह्मगुप्त
(3) ब्रह्मपुत्र
ब्रह्मा द्वारा उत्पादित ।
ब्रह्मा द्वारा सृष्टिवाद के विविध पक्षों का निरूपण वैदिक साहित्य में विस्तृत रूप से उपलब्ध होता है ।
ब्रह्मा द्वारा बीज बोया हुआ । ब्रह्मा द्वारा संरक्षित ( गोपित) ।
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में पुरुष (आदिपुरुष) को सृष्टि का कर्ता माना गया है। उसके हजार सिर, हजार पैर और हजार आँखें थी । सारी सृष्टि उसकी है। उस पुरुष से 'विराज' उत्पन्न हुआ और उससे दूसरा पुरुष 'हिरण्यगर्भ' पैदा हुआ।
तैत्तिरीय उपनिषद् के अनुसार 'आत्मा था । उसने सोचा, मैं अकेला हूँ, बहुत हो जाऊँ। उसने तपश्चर्या की । विश्व की सृष्टि की '। प्रश्नोपनिषद् में थी इसी का समर्थन मिलता है। बृहदारण्यक के अनुसार 'पहले एक ही आत्मा पुरुष के रूप में था । उसे अकेले में आनन्द नहीं आया। उसमें एक से दो होने की भावना जगी । उसने अपनी आत्मा को दो भागों में बाँटा । एक भाग स्त्री और दूसरा भाग पुरुष बना । दोनों पति-पत्नी के रूप में रहे। उससे सारी मानव सृष्टि का अस्तित्व आया। फिर प्राणी जगत् बना । फिर नाम रूप में आत्मा का प्रवेश हुआ ।' छन्दोग्योपनिषद् के अनुसार 'पहले केवल सत् था। एक से अनेक होने की भावना जगी। उसने तेज उत्पन्न किया। तेज से पानी उत्पन्न हुआ। पानी
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 289
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