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________________ 14. दशवकालिक सूत्र, 4/8 जयं चरे जयं चिठे जयमासे जयं सये। जयं मुंजतो भासंतो पाव कम्मं न बंधई। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 40 वही - 396 15. 16. 9. जगत्कर्तृत्ववाद सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में जगत्कर्तृत्ववाद का विशद वर्णन है। इसके द्वारा शास्त्रकार ने जगत् की रचना के सन्दर्भ में अज्ञानवादियों के प्रमुख 7 मतों का निरूपण किया है। यह जगत् - (1) किसी देव द्वारा कृत, गुप्त (संरक्षित) एवं उप्त (बोया हुआ) (4) (2) ब्रह्मा द्वारा रचित, रक्षित या उत्पन्न है। जीव और अजीव से युक्त तथा सुख-दु:ख से समन्वित ईश्वर के द्वारा कृत-रचित है। प्रधान (प्रकृति) आदि के द्वारा कृत है। (5) स्वयंभूकृत है। (6). यमराज (मार-मृत्यु) रचित माया है, अत: अनित्य है। (7) अण्डे से उत्पन्न है। लोक रचना के सम्बन्ध में शास्त्रकार ने उपरोक्त जिन विभिन्न मतों का प्रतिपादन किया है, उनके बीज उपनिषदों, पुराणों एवं स्मृतियों में तथा सांख्यादि दर्शनों में मिलते है। 1. देवकृत लोक 'देवउत्ते' यह लोक देव द्वारा उप्त है। जैसे कृषक बीजों का वपन कर फसल उगाता है, वैसे ही देवताओं ने बीज वपन कर इस संसार का सर्जन किया है। 'देवउत्ते' शब्द के संस्कृत में तीन रूप हो सकते है - (1) देवउप्त - देव द्वारा बीज की तरह वपन किया हुआ। (2) देवगुप्त - देव द्वारा रक्षित (पालित)। (3) देवपुत्र - देव द्वारा उत्पादित। 288 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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