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चम्पक, अशोक, नाग और आम आदि वृक्षों में फल-फूल की उत्पत्ति विशिष्ट काल आने पर ही होती है, सर्वदा नहीं। यहाँ नियतिवादियों ने आपत्ति उठाई है कि काल एक रूप होने से उससे विचित्र जगत की या सुख-दुःखादि फल की उत्पत्ति नहीं हो सकती। परन्तु यह आपत्ति उचित नहीं है क्योंकि आर्हत दर्शन में फल की उत्पत्ति में अकेले काल को ही कारण नहीं माना गया है। स्वभाव भी कथंचित् कर्ता है क्योंकि आत्मा का उपयोग रूप तथा असंख्य प्रदेशी होना तथा पुद्गलों का मूर्त होना, धर्म तथा अधर्म का क्रमश: गति-स्थिति में सहयोगी व अमूर्त होना, यह सब स्वभावकृत ही है।
वह स्वभाव आत्मा से भिन्न है या अभिन्न ? नियतिवादियों के इस प्रश्न का समाधान वृत्तिकार ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है - स्वभाव आत्मा से भिन्न नहीं है तथा आत्मा कर्ता भी है। आत्मा का यह कर्तृत्व स्वभावकृत है। इसी प्रकार ईश्वर (कर्मबद्ध ईश्वर-संसारी आत्मा) भी जगत् एवं सुख-दुःख का कर्ता है क्योंकि आत्मा ही विभिन्न योनियों में उत्पन्न होता हुआ, सर्वव्यापक होने के कारण ईश्वर है। वही ईश्वर सुख-दुःखादि का कर्ता है' यह सर्वमतवादियों को अभीष्ट है। फिर सुख-दु:ख का कर्ता ईश्वर है, इस मान्यता को दूषित करने के लिये नियतिवादी, आत्मा मूर्त है या अमूर्त ? ऐसा प्रश्न करते है। यह दूषण भी आत्मा (कर्मबद्ध आत्मा) को ईश्वर मानने पर समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार कर्म भी कर्ता है क्योंकि वह जीव प्रदेश के साथ परस्पर मिल कर रहता हुआ कथंचित् जीव से अभिन्न है और उसी कर्म के वश जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य
और देवगति में भ्रमण करता हुआ सुख-दुःख भोगता है। कर्म की विचित्रता ही फल की विचित्रता का कारण है।
विमर्शणीय है कि आर्हत दर्शन में ये पाँचों समवाय जब एक साथ मिलते है. तब कहीं जाकर किसी कार्य की निष्पत्ति होती है। मात्र नियतिवाद का कथन एकान्त मिथ्याआग्रह है। नियतिवादी एक तरफ नियति को ही सर्वस्व मानते है, परन्तु दूसरी तरफ परलोक सुधारने के लिये अपने मत द्वारा मान्य विविध क्रियाएँ करते हुए अपने ही मत का खण्डन करते है।
सूत्रकार ने इन्हें पार्श्वस्थ कहते हुए इसका कारण बताया है कि ये कारण चतुष्टय को छोड़कर मात्र नियति को ही मानने के कारण एक पार्श्व में- एक किनारे पर स्थित हो गये है। इस एकान्तवादी मान्यता के मिथ्या जाल में फँसकर ये आत्मावंचना करते हुए असत् प्ररूपणा के कारण अशुभ कर्मबंधनों से जकड़
276 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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