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प्रकाशकीय
पूजनीया साध्वी डॉ. नीलांजना श्री जी म. द्वारा लिखित शोध-प्रबंध को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए आनंद की अनुभूति हो रही है । यह ग्रन्थ सर्वज्ञ परम पिता प्रभु महावीर की मूल वाणी एवं अंग आगम में द्वितीय स्थान पर स्थापित सूत्रकृतांग सूत्र के दार्शनिक पक्ष के साथ ही तत्कालीन विद्यमान विभिन्न मतों को भी प्रस्तुत करता है। पूजनीया साध्वी श्री ने इस गंभीर आगम ग्रन्थ पर शोध कर अद्भुत कार्य किया है। यद्यपि उनकी लेखन - यात्रा का यह प्रथम सोपान है, परंतु विषयगत गंभीरता व लेखन-निष्ठा को देखकर उनकी प्रतिभा संपन्नता व परिपक्वता का बोध होता है। संघ आप जैसी उदीयमान साध्वी श्री को पाकर गौरवान्वित है। हमारी शुभकामना है कि वे अपनी गुरूवर्या श्री के कुशल मार्गदर्शन में अविराम अपनी कलम चलाती हुई साहित्य की ऊँचाईयों का स्पर्श करें।
ग्रन्थ के अर्थसहयोगी हैं धर्मकार्य में सदैव अग्रणी मांडवला निवासी श्री रिखबचंदजी रूपचंदजी दांतेवाड़िया परिवार । मांडवला गाँव में परमात्मा सुमतिनाथ मंदिर में प्रतिष्ठा के अवसर पर मूलनायक परमात्मा को बिराजमान करने एवं बाद में जहाज मंदिर की प्रतिष्ठा के अवसर पर मूलनायक परमात्मा शांतिनाथ प्रभु को बिराजमान करने का लाभ आपने प्राप्त कर एक कीर्तिमान स्थापित किया था। हम दांतेवाड़िया परिवार के सहयोग का अनुमोदन करते हुए उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। साथ ही हम पूज्य गुरूदेव श्री एवं गुरूवर्या श्री के आभारी हैं कि उन्होंने ग्रन्थ के प्रकाशन का श्रेय इस संस्था को प्रदान किया। साध्वी जी के उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करते हुए सुज्ञ पाठकों से निवेदन है कि वे इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करके लेखिका के श्रम को सार्थकता प्रदान करें। डॉ. यू. सी. जैन
महामंत्री, जहाज मंदिर, माण्डवला
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