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है कि स्वभाव सुख-दुःख का कर्त्ता नहीं हो सकता। वे प्रति प्रश्न करते है कि स्वभाव पुरुष से भिन्न है या अभिन्न ? यदि पुरुष से भिन्न है तो वह स्वभाव पुरुष के सुख-दुःखों को उत्पन्न नहीं कर सकता, पुरुष से भिन्न होने से । यदि अभिन्न है, तो वह पुरुष ही है और पुरुष सुख - दुःख का कर्ता नहीं है, यह नियतिवादियों ने पहले ही स्पष्ट कर किया है। नियतिवादी युक्तिपूर्वक नियतिवाद के पक्ष में तर्क देते हुए कहते है कि एक ही माता के उदर से जन्में दो प्राणियों का पृथक्-पृथक् स्वभाव नियत करने का काम नियति के बिना नहीं हो सकता।" ईश्वर
ईश्वरवादियों के अनुसार ईश्वर ही जगत् तथा सुख - दुःख का कर्ता है। इसका खंडन करते हुए नियतिवादी कहते है कि ईश्वर को भी सुख - दुःखादि का कर्त्ता नहीं माना जा सकता। यदि उसे कर्त्ता माना जाये तो यह प्रश्न उठेगा कि वह मूर्त है या अमूर्त ? ईश्वर को मूर्त मानना असंगत है क्योंकि मूर्त मानने पर वह हम लोगों के समान ही देहादिमान् होने से सबका कर्त्ता नहीं हो सकेगा।
माने पर आकाश की तरह सदा-सर्वदा निष्क्रिय हो जायेगा। जो निष्क्रिय होता है, वह किसी कार्य का कर्ता नहीं होता । फिर यह शंका भी होगी कि पुरुष रागादिमान् है या वीतराग ? यदि रागयुक्त ईश्वर की कल्पना की जाती है, तो वह हम लोगों के समान होने से जगतकर्त्ता नहीं हो सकता । यदि वह वीतराग है, तो उसके द्वारा कोई स्वरूपवान्, कोई कुरुपवान्, निर्धन, धनवान् आदि विचित्र जगत् की रचना न होती । इस प्रकार ईश्वर को कर्ता मानने पर उसमें निर्दयता, पक्षपात, अन्याय आदि अनेक दोषापत्तियाँ आ जायेगी । अतः समस्त जीवात्मा नियति के ही अधीन है ।
कर्म
कर्मवादियों के अनुसार कर्म ही सुख - दुःख का कर्त्ता है । किसान, वणिक् व्यक्ति के उद्यम में सदृशता होने पर भी उनके फल में जो विसदृशता दिखायी देती है, वह पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म का ही प्रभाव सूचित करती है। इसका प्रतिवाद करते हुए नियतिवादी कहते है कि कर्म भी सुख - दुःख का कर्ता नहीं हो सकता। क्योंकि यहाँ भी प्रश्न होगा कि वह कर्म पुरुष से भिन्न है या अभिन्न ? यदि अभिन्न है तो वह पुरुष मात्र ही है। तब वह सुख, दुःख का कर्ता नहीं हो सकता । यदि भिन्न है, तो वह सचेतन है या अचेतन ? यदि सचेतन है, तो एक शरीर 272 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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