________________
काल
कालवादी सुख-दु:खादि का कारण काल को मानते हुये कहते है- काल ही सबका कर्ता है। उसी के कारण सारे विश्व की उत्पत्ति-स्थिति और प्रलय होता है। काल ही समस्त भूतों को परिपक्व बनाता है, प्रजा का संहार करता है, सोते हुये जगत् के जीवों में स्वयं जागता रहता है। काल का सामर्थ्य अनुल्लंघनीय है।' काल ही समस्त कार्यों का जनक और जगत का आधार है। काल के बिना चम्पा, अशोक, आम आदि वनस्पतियों में फल-फूल लगना, कोहरे से जगत् को धूमिल करनेवाला हिमपात, नक्षत्रों का संचार, गर्भाधान, वर्षादि ऋतुओं का समय पर आगमन, बाल-यौवन-वृद्धत्व आदि अवस्थाएँ, ये सब काल के प्रति नियत है। काल आने पर ही देवताओं का च्यवन होता है, काल आने पर ही सुर-असुर आदि तथा राजा आदि जीव नष्ट होते हैं। जो कुछ भी कर्म वर्तमान में हम देख रहे है, उन सबका प्रवर्तक काल ही है।
काल को त्रिकाल-त्रिलोकव्यापी तथा प्रत्येक कार्य का कर्ता, सुख-दु:खादि का कारण मानने वाले कालवादियों का खण्डन करते हुये नियतिवादी कहते है कि यदि काल ही सर्वव्यापक तथा समस्त कार्यों का कारण है तो एक ही काल में दो पुरुषों द्वारा किये जाने वाले एक समान कार्य में सफलता-असफलता रूप विभिन्नता क्यों दिखायी देती है ? जहाँ एक ही कारण हो वहाँ कार्यों में भेद असम्भव है। चूंकि यह बात प्रत्यक्ष प्रमाण है, अत: काल को समस्त कार्यों का कारण नहीं माना जा सकता।"
स्वभाव
स्वभाववादियों के अनुसार सारा जगत स्वभाव से ही निष्पन्न है। सभी पदार्थ स्वत: परिणमनशील स्वभाव के कारण ही उत्पन्न होते है। अर्थात् वस्तुओं का स्वभाव स्वत: परिणाति करने का है। मिट्टी से घड़ा ही उत्पन्न होता है, कपड़ा नहीं। सूत से कपड़ा ही बनता है, घड़ा नहीं। यह प्रतिनियत कार्य-कारण भाव स्वभाव के बिना असम्भव है। संसार में सारी प्रवृत्तियों का कारण स्वभाव हैकाँटों में नुकीलापन, हरिण और पक्षियों के विचित्र स्वभाव, उनके विविधरंगी पंख, उनकी मधुर कूजन, मृगों की सुन्दर आँखें, उनकी कुलांचे भरकर कूदने की प्रवृत्ति, यह सब स्वभाव के कारण ही है। 2
स्वभाववादियों की इन युक्तियों का खण्डन करते हुये नियतिवादी कहते
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 271
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org