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तत्त्वसंग्रह - क्रमेण युगपच्चापि यस्मादर्थ क्रिया कृता न भवन्ति स्थिराभावा निःसत्वा
स्ततो मतः ॥
मज्झिमनिकाय, चूलमालुंक्य सुत्त 63
सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
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विसुद्धिमग्ग खंधनिद्देश पू. - 309 : . आयोधातु, तेजोधातु वायोधातुत्ति । सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
26
(अ) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
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(च) अमरसुख बोधिनी व्याख्या पृ.
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सूत्रकृतांग वृत्तपत्र
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वही
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तत्थभूतरूपं चउव्विधं पृथवीधातु,
26 : यस्मिन्नेव हि सन्ताने आहिता कर्मवासना । फलं तत्रैव संधत्ते:, कर्पासे रक्तता यथा ॥
119-124
7. नियतिवाद
सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध में नियतिवाद का निरूपण
हुआ है।
इससे पूर्व पंचमहाभूतवाद, तज्जीव- तच्छरीरवाद, पंचस्कन्धवाद, आत्माद्वैतवाद, अकारकवाद, आत्मषष्ठवाद तथा क्षणिकवाद आदि का विस्तृत वर्णन - विश्लेषण हुआ । इन वादों से भिन्न एवं विपरीत तथा युक्तिसंगत, यथार्थ वस्तुस्वरूप नियतिवाद में बताया गया है।
सूत्रकृतांग के मूलपाठ में इस मत के पुरस्कर्ता गोशालक का कहीं भी नाम नहीं है । वृत्तिकार ने इस मत को नियतिवादी कहा है । '
उपासकदशा नामक सप्तम अंग आगम में गोशालक तथा उसके मत नियतिवाद का स्पष्ट उल्लेख है ।" उसमें बताया गया है कि गोशालक के मतानुसार बल, वीर्य, उत्थान, कर्म आदि कुछ भी नहीं है । सब भाव सर्वदा के लिये नियत है। अन्य आगम ग्रन्थ व्याख्याप्रज्ञप्ति, स्थानांग, समवायांग व औपपातिक में भी आजीवकमत प्रवर्तक नियतिवादी गोशालक का ( नामपूर्वक अथवा नामरहित) वर्णन उपलब्ध है।
बौद्धग्रन्थ दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुत्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय आदि भी गोशालक के नियतिवाद का उल्लेख है । गोशालक का आजीवक सम्प्रदाय राजमान्य भी हुआ । बौद्ध ग्रन्थ महावंश की टीका में यह बताया गया है कि
268 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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