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________________ सत् पदार्थ में क्षणिकत्व ही सिद्ध होता है। पदार्थ की क्षणिकता - नित्य पदार्थ में क्रम से या युगपत् (एकसाथ) अर्थक्रिया नहीं हो सकती क्योंकि नित्य, अविनश्वर पदार्थ का स्वभाव बदलेगा ही नहीं और बिना स्वभाव परिवर्तन के भिन्न-भिन्न क्रियाएँ सम्भव नहीं, अत: नित्य पदार्थ द्वारा क्रिया नहीं हो सकने के कारण वह कोई वस्तु हो ही नहीं सकता।' ... यदि नित्य पदार्थ क्रम से कार्य करेगा तो कालान्तर में होने वाली समस्त क्रियाओं को पहली क्रिया के समय में क्यों नहीं कर लेता ? क्योंकि समर्थ कालक्षेप नहीं करता। यदि ऐसा कहे कि पदार्थ अर्थक्रिया करने में समर्थ तो है, बशर्ते कि उसे सहकारी कारणों का सहयोग मिले, तो यह समाधान भी उपयुक्त नहीं है। ऐसा होने पर तो वह असमर्थ और पराश्रित हो जायेगा। अत: नित्य पदार्थ का क्रम से अर्थक्रियाकारित्व असमीचीन है। यदि नित्य पदार्थ युगपत् अर्थ-क्रिया करने लगे तो एक पदार्थ समस्त देशकालों में होने वाली समस्त क्रियाओं को एक साथ ही कर लेगा। परन्तु ऐसी प्रतीति कहीं भी किसी को नहीं होती। यदि सभी पदार्थों की उत्पत्ति एक साथ मानी जाय तो कार्य और कारण भी एक साथ उत्पन्न होने लगेंगे, तब दण्डघटादि में परस्पर कार्य-कारण भाव नहीं बन सकेगा और यदि स्थिर पदार्थ एक साथ ही समस्त अर्थ-क्रियाओं को कर डालेगा, तो दूसरे-तीसरे क्षण में क्या करेगा ? अत: एक साथ (युगपत्) अर्थ-क्रिया करने का पक्ष भी असतग्राही इस प्रकार बौद्धमतवादी पदार्थ की नित्यता के विरोध में तर्क प्रस्तुत कर उसे अनित्य सिद्ध करने का प्रयास करते है। पदार्थ को अनित्य मानने पर उसकी क्षणिकता अनायास ही सिद्ध हो जाती है। शास्त्रकार के 'अण्णो-अणण्णो' इन पदों को वृत्तिकार ने स्पष्ट किया हैपाँच भूत और छठे आत्मा को मानने वाले आत्मषष्ठवादी पाँच भूतों से अन्य (पृथक्) आत्मा का अस्तित्व स्वीकारते है, जबकि तज्जीव-तच्छरीरवादी, पंचमहाभूतवादी इन भूतों से अभिन्न (अनन्य) आत्मतत्व को मानते है, परन्तु बौद्ध मत इन दोनों से पृथक है। बुद्ध ने पाँच भूतों से निर्मित शरीर से आत्मा को अन्य या अनन्य कहने से इन्कार किया है। यह उनके अव्याकृत प्रश्नों से स्पष्ट होता है। सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 263 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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